भजन/भावगीत

मुझको वृंदावन जाना है

मैं प्रेम भरी एक बदली हूँ
मुझको वृंदावन जाना है
बरसूँगी नित बरसाना में
जिसके कण-कण में कान्हा है,

अंबर के आँचल से निकली
तब सुकूं धरा को दे पायी
भावों की सरिता का जल ले
मैं कुंज गली में हूँ आयी
गिरधर के दर्शन की प्यासी
चरणामृत अब बन जाना है
बरसूँगी नित बरसाना में
जिसके कण-कण में कान्हा है

जब से विरहा की तपिश बढ़ी
सूखी है धरती गोकुल की
राधा सँग गोपी भी व्याकुल
अनुताप बढ़ी यमुना जल की
श्यामा के पावन जल में मिल
मुझको ये ताप घटाना है
बरसूँगी नित बरसाना में
जिसके कण-कण में कान्हा है

सूना है हर घर और आँगन
हर कली- कली मुरझाई है
ना पुष्पित है कोई उपवन
ना मुदित हुई अमुराई है
रूठे – रूठे मेरे कान्हा को
विनती कर मुझे मनाना है
बरसूँगी नित बरसाना में
जिसके कण-कण में कान्हा है।।

— अनामिका लेखिका

अनामिका लेखिका

जन्मतिथि - 19/12/81, शिक्षा - हिंदी से स्नातक, निवास स्थान - जिला बुलंदशहर ( उत्तर प्रदेश), लेखन विधा - कविता, गीत, लेख, साहित्यिक यात्रा - नवोदित रचनाकार, प्रकाशित - युग जागरण,चॉइस टाइम आदि दैनिक पत्रो में प्रकाशित अनेक कविताएं, और लॉक डाउन से संबंधित लेख, और नवतरंग और शालिनी ऑनलाइन पत्रिका में प्रकाशित कविताएं। अपनी ही कविताओं का नियमित काव्यपाठ अपने यूटयूब चैनल अनामिका के सुर पर।, ईमेल - anamikalekhika@gmail.com