सामाजिक

लड़कियाँ आत्मनिर्भर बनो

बदलते वक्त के साथ जैसे हर चीज़ में परिवर्तन आता रहा है वैसे हम भी बदल रहे है, और देश भी बदल रहा है और साथ-साथ महिलाओं की दशा में भी परिवर्तन आ रहा है स्त्रियाँ सशक्त और आत्मनिर्भर बन रही है जो कि बहुत ही जरूरी है। पर आज भी कुछ लड़कीयों के लिए कुछ नहीं बदला, या तो आर्थिक परिस्थिति तंग होने की वजह से या परिवार की पितृसत्तात्मक सोच के चलते लड़कियां शिक्षित होने से वंचित रह जाती है। सरकार की बालिकाओं के लिए कितनी सारी योजनाएं धरी की धरी रह जाती है, कोई लाभ नहीं उठाता। आज के ज़माने में लड़कियों का आत्मनिर्भर होना बहुत जरूरी है।
हर इंसान को ईश्वर कोई न कोई हुनर अवश्य देता ही है, हर युग में प्रतिभाशाली महिलाएँ रही हैं और हर युग में उन्होंने अपनी प्रतिभा से समाज में स्त्री सशक्तीकरण का उदाहरण प्रस्तुत किया है। उनमें सती सीता, सावित्री, द्रौपदी, गार्गी आदि पौराणिक देवियों से लेकर रानी दुर्गावती, रानी लक्ष्मीबाई, अहिल्या बाई, रानी पद्मिनी, आदि महान विरांगनाओं से लेकर इंदिरा गाँधी और किरण बेदी से लेकर सानिया मिर्ज़ा और पी टी उषा आदि आधुनिक भारत की महिलाओं ने भारत को गौरवान्वित किया है। महिलाओं ने धरती पर ही नहीं बल्कि अन्तरिक्ष में भी अपना परचम लहराया है इनमें सुनीता विलियम्स और कल्पना चावला प्रमुख हैं। फिर भी महिलाओं को हर युग में पितृसत्तात्मक सोच के चलते भेदभाव और उपेक्षा का भी सामना करना पड़ा है। महिलाओं का विकास देश का विकास है।
आर्थिक स्वतंत्रता एक ऐसी स्वतंत्रता है जिससे व्यक्ति में आत्मविश्वास स्वयं ही आ जाता है और व्यक्ति अपना जीवन अपनी शर्तों पर जीने तथा अपने निर्णय स्वयं लेने में सक्षम होता है।
पहले आमदनी का एक सीमित जरियाँ होता था खर्चे कम होते थे और महंगाई भी इतनी नहीं थी तो सिर्फ़ पुरुष की आय में काम चल जाता था । पर आज के माहौल में सब कुछ बदल चुका है स्त्री अगर सक्षम है तो वह आर्थिक रूप से घर की जिम्मेदारियों को उठाने में पुरुष का साथ क्यों नहीं दे सकती। इससे परिवार इस महंगाई के समय में आर्थिक रूप से सक्षम बना रहेगा। बच्चों को अच्छी परवरिश दे पाएंगे और हर छोटी बड़ी जरूरत के लिए मन मारना नहीं पड़ेगा। कई बार महिलाओं को अपने जीवन काल में पति से अलग होना पड़ता है, या अचानक पति की मृत्यु हो जाती है तो अकेले ही अपना जीवन जीना पड़ता है। ऐसी परिस्थिति में महिला शक्तिहीन हो जाती है और अपने परिवार का भरण पोषण करना उसके लिए मुश्किल हो जाता है। इन परिस्थितियों से निपटने का एक मात्र उपाय लड़कियों की शिक्षा और उनकी आत्मनिर्भरता है। महिला अपने पैरों पर खड़ी होगी तो किसीका मोहताज नही होना पड़ेगा।
हर माँ बाप का आज नैतिक फ़र्ज़ है
लड़कीयों को रोजगार पूरक शिक्षा दिलाएं इससे वे समाज में व्याप्त दहेज प्रथा जैसी सामाजिक बुराई से भी लड़ सकेंगी। लड़कीयों को खुद भी अपनी शक्ति को पहचानकर आगे आना होगा, तभी वे समाज में  अपनी अलग पहचान बना सकेंगी और ज़िंदगी में आने वाली हर विपदा से आत्मसम्मान के साथ जूझ सकेंगी।
आज हर लड़की को ये संकल्प लेना चाहिए कि मैं अपने हुनर को पहचानूँगी और स्वावलम्बी बनकर दूसरों के लिए भी प्रेरणास्रोत बनूँगी। कोई काम छोटा नहीं होता जरूरी नहीं आप डाॅक्टर, इन्जीनियर या वकील ही बनें आपके अंदर जो हुनर है उसे पहचान कर विकसित करें और उसको लक्ष्य बनाकर उस क्षेत्र में आगे बढ़े। मकसद आर्थिक रुप से सक्षम बनने का है। और हर एक लड़की को आत्मनिर्भर होना ही चाहिए।
— भावना ठाकर

*भावना ठाकर

बेंगलोर