ग़ज़ल
बुझते दीप जला सकते हैं दो आँसू।
रात्रि को रूशना सकते हैं दो आँसू।
सूर्य चाँद सितारे बन कर चमकेंगे,
इक इतिहास बना सकते हैं दो आँसू।
गंदा फोड़ा शु( करना, चीर लगाओ,
तेज़ छुरी में आ सकते हैं दो आँसू।
लम्बी चैड़ी एक चिंगारी बन जाते,
वन में आग लगा सकते हैं दो आँसू।
अगर क्रान्ति एक हथौड़ा बन जाए,
पत्त्थरों को तड़पा सकते हैं दो आँसू।
सुस्त ज़मीरें, सोई हुई तदबीरों को,
अंदोलन परत बना सकते हैं दो आँसू।
सच्ची पाक मुहोब्बत दिल में ’गर होवै,
त्यार की मंज़िल पा सकते हैं दो आँसू।
लाख-करोड़ों लोगों की आवाज़ बनें,
सारा तख़्त हिला सकते हैं दो आँसू।
सीने साथ लगा कर कोई देखे तो,
‘बालम’ वापिस जा सकते हैं दो आँसू।
— बलविन्दर ‘बालम’ गुरदासपुर