कविता

बसंत

इस बाबरे मन की कहानी सुनो बोला यह आंख खुली क्यों आधी रात को. कोन ख़्वाब में आया आधी रात को. मैंने कहा रहन दे भाई न कर ज्यादा सवाल जवाब सोने दे न. गुजर न जाए तेरे सवालों में मेरी पूरी रात. तू सुन यह गाना और मुझको न कर तंग. मुझे सोने दे. बसंत का आगमन हो रहा है तो इसे भी मस्ती छा रही है.

मन क्यों बहका री बहका, आधी रात को
बेला महका री महका, आधी रात को
किसने बंसी बजाई, आधी रात को
जिसने पलकें चुराई, आधी रात को
झांझर झमके सुन झमके, आधी रात को
उसको टोको ना रोको, रोको ना टोको, टोको ना रोको, आधी रात को
लाज लागे री लागे, आधी रात को
देना सिंदूर क्यों सोऊँ आधी रात को
मन क्यों बहका री…
बात कहते बने क्या, आधी रात को
आँख खोलेगी बात, आधी रात को
हमने पी चाँदनी, आधी रात को
चाँद आँखों में आया, आधी रात को
मन क्यों बहका री…
रात गुनती रहेगी, आधी बात को
आधी बातों की पीर, आधी रात को
बात पूरी हो कैसे, आधी रात को
रात होती शुरू है, आधी रात को
मन क्यों बहका री…

*ब्रजेश गुप्ता

मैं भारतीय स्टेट बैंक ,आगरा के प्रशासनिक कार्यालय से प्रबंधक के रूप में 2015 में रिटायर्ड हुआ हूं वर्तमान में पुष्पांजलि गार्डेनिया, सिकंदरा में रिटायर्ड जीवन व्यतीत कर रहा है कुछ माह से मैं अपने विचारों का संकलन कर रहा हूं M- 9917474020