ऋतुराज

छोड़ दी है अब अपनी कश्ती
इन हवाओं के सहारे
देखता हूं कहां तक
और किधर
बहा कर ले जाती हैं
यह अब मुझे
लगाएंगी किसी किनारे
या मझधार में डूबा देंगी
अब जो कुछ भी हो
जब छोड़ ही दिया
इन हवाओं के सहारे
फिर डूबने उतरने का डर कैसा

छोड़ दी है अब अपनी कश्ती
इन हवाओं के सहारे
देखता हूं कहां तक
और किधर
बहा कर ले जाती हैं
यह अब मुझे
लगाएंगी किसी किनारे
या मझधार में डूबा देंगी
अब जो कुछ भी हो
जब छोड़ ही दिया
इन हवाओं के सहारे
फिर डूबने उतरने का डर कैसा