सामाजिक

मौन की महत्ता

दिल और दिमाग के सामंजस्य का सबसे बड़ा उदाहरण का जगह मौन के अलावा कोई और नहीं ले सकता।या यूं कहें तो मानव के नैतिक आचरण का आश्रय स्थल मौन ही होता है।
मौन आत्मा में ही विचारों का बाजार लगता है जहाँ टिकाऊ व बहुमूल्य बिचारो का आयात-निर्यात निरन्तर जारी रहता है।वैसे तो आप सुने ही होंगे कि मौन का भाव बहुत गहरा होता है परन्तु ये भी यथार्थ सत्य है कि मौन साधकर किसी को दिया गया दर्द इससे भी ज्यादा गहरा होता है।
हर वक्त हर बात का जबाब देना भी उचित नही होता है। कई बार तो आपसी रिश्ते में तीखी क्रिया-प्रतिक्रिया के चलते या तो गिरह पड़ जाती है या मजबूत से मजबूत रिश्ते का बंधन पल भर में उचट जाता है,यहां रिश्ते के बंधन को दागदार गाँठ से छुटकारा कोई दे सकता है तो वो है केवल मौन।
वैसे हर समय मौन रहना भी उचित नही है पर निरन्तर अनेकानेक मूल्यहीन व सड़ी-गली बात बोलने से लाख भला मौन की चदर तानना ही है।
महात्मा बुद्ध,महाबीर व महात्मा गाँधी से अच्छा मौन का उदाहरण कहाँ मिल सकता है जिनके आवाजो की नही बल्कि मौनपूरित कर्मो की गूँज पूरे संसार मे आज भी जीवंत है।
— आशुतोष यादव
      बलिया ,उत्तर प्रदेश

आशुतोष यादव

बलिया, उत्तर प्रदेश डिप्लोमा (मैकेनिकल इंजीनिरिंग) दिमाग का तराजू भी फेल मार जाता है, जब तनख्वाह से ज्यादा खर्च होने लगता है।