काव्य रसगुल्ले
युवतियाँ प्रेम विवाह
या अरेंज मैरिज भी करेंगी,
तो चुनकर ही
यानी वर डॉक्टर,
एमबीए या बी.टेक. हो;
चाहे बी.टेक. माने
खुजली की दवाई ठहरे !
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होली में दूसरे की पत्नी ही
याद क्यों आती है ?
अपनी पत्नी तो
पूवे-पकवान बनाने में
व्यस्त रहती है !
लगा न झटका ?
बुरा ना मानो होली है !
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पहले एक रात गाँवभर में
अकेले ही घूमकर
‘जागते रहो’ कहकर देखो,
तब कहना- ‘मैं भी चौकीदार !’
बुरा ना मानो होली है !
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आजकल हवेलीवाले
जमींदार भी
कहने लगे हैं-
‘मैं भी चौकीदार!’
और एक स्टाइलिश
हेयरवाली कहती हैं
कि वो भी समुद्र में
तैरना जानती हैं !
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ये ‘कांग्रेस’ और ‘भाजपा’ के
सुरताल एक जैसे हो गए हैं,
दोनों ‘गंगा’ की शरण में हैं,
किन्तु आम जनताओं की
शरण में नहीं !
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माँ गंगा ने बुलाई है !
हमारे यहाँ इसे
‘गंगा लाभ’ कहा जाता है
यानी
गंगा का बुलावा
कहने से तात्पर्य
मरने के बाद का कर्मकांड !
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बेरोजगारी घटी नहीं,
कोई युवती पटी नहीं !
सोचता हूँ देश की खातिर,
चौकीदार ही सही !
कि भगवा रंग से
एगो बार और,
मना लें त्योहार !
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