कविता

रंगीन बेरोजगारी

बेरोजगारी घटी नहीं,
कोई युवती पटी नहीं !
सोच लिया हूँ
मानवता की खातिर,
‘अप्रैल फुल’ तक
घर पर
निठल्ला पड़ा रहूँ !
संकट की घड़ी में
‘गायब’ है वह !
न अखबारों में,
न संसद में,
न जमीन पर !
होली ‘गम’ का त्योहार है !
हम गम के रंगों में
‘रंगहीन’ हो
गिरगिटी नेताओं के
रंगे सियाराना चेहरे का
पर्दाफाश करें !
बेटी बचाओ,
किन्तु ‘होलिका’ का
दहन क्यों?
हर नस्ल, जाति,
सम्प्रदाय की बेटी
यानी सबकी बेटी!
पर बहन-बेटी का
दहन क्यों?
किसी बेटी का जलना
‘आहतवाली’ बात
नहीं है क्या ?
“कवयित्री शैफाली के बहाने-
औरत को विराम कहाँ ?
उनकी हर अंग अल्पविराम है !
मर्द कुछ देर यहाँ ठहर
विस्मयादि चिह्न छोड़ जाते !
और कुछ लगा जाते
प्रश्नवाचक दाग ?”
इसलिए गलत परंपरा का
निर्वहन नहीं हो !
होलिका दहन के नाम पर
बाहर रखी
मेरी चौकी जला दी गयी !
फिर होली क्यों ?
रंगपर्व यानी फगुआ की
शुभमंगलकामनाएँ !

डॉ. सदानंद पॉल

एम.ए. (त्रय), नेट उत्तीर्ण (यूजीसी), जे.आर.एफ. (संस्कृति मंत्रालय, भारत सरकार), विद्यावाचस्पति (विक्रमशिला हिंदी विद्यापीठ, भागलपुर), अमेरिकन मैथमेटिकल सोसाइटी के प्रशंसित पत्र प्राप्तकर्त्ता. गिनीज़ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स होल्डर, लिम्का बुक ऑफ रिकॉर्ड्स होल्डर, इंडिया बुक ऑफ रिकॉर्ड्स, RHR-UK, तेलुगु बुक ऑफ रिकॉर्ड्स, बिहार बुक ऑफ रिकॉर्ड्स इत्यादि में वर्ल्ड/नेशनल 300+ रिकॉर्ड्स दर्ज. राष्ट्रपति के प्रसंगश: 'नेशनल अवार्ड' प्राप्तकर्त्ता. पुस्तक- गणित डायरी, पूर्वांचल की लोकगाथा गोपीचंद, लव इन डार्विन सहित 12,000+ रचनाएँ और संपादक के नाम पत्र प्रकाशित. गणित पहेली- सदानंदकु सुडोकु, अटकू, KP10, अभाज्य संख्याओं के सटीक सूत्र इत्यादि के अन्वेषक, भारत के सबसे युवा समाचार पत्र संपादक. 500+ सरकारी स्तर की परीक्षाओं में अर्हताधारक, पद्म अवार्ड के लिए सर्वाधिक बार नामांकित. कई जनजागरूकता मुहिम में भागीदारी.