कथा साहित्यलघुकथा

गौरैया



एक दिन जब गौरैया दाना चुगकर लाई तो देखती है कि घर वाला पेड़ ग़ायब है! हाय! मेरे बच्चे! चुन्नु – मुन्नु कहाँ हो तुम? व्याकुल होकर इधर- उधर चारों ओर देखती है पर! कुछ नज़र नहीं आता! वह बहुत विलाप करती है, सब पक्षी उसको सांत्वना देने के लिये इकट्ठे हो जाते हैं! कहते हैं बस अब और नही सहेंगें!
वे सब मिलकर पर्यावरण न्यायालय का दरवाज़ा खटखटाते हैं और न्याय की भीख माँगते हैं! जज साहिबा अपना न्याय सुनाती हैं कि हत्या एक जघन्य अपराध है और इसकी सज़ा उनको ज़रूर मिलेगी। थोड़ा समय दो!
तुरंत नेताओं की आकस्मिक बैठक बुलाई जाती है! जिसमें हवा, पानी, अग्नि, अंबर और पृथ्वी शामिल होते हैं। सारा केस जज साहिबा के सामने रक्खा जाता है, बहुत देर तक बहस होती रहती है! सब अपना–अपना पक्ष रखते हैं। सबसे ज़्यादा चोट पृथ्वी को ही लगेगी ऐसा सबका मानना था। सबके भले के लिये वह चोट खाने को भी तैयार हो जाती है ।
अंत में निर्णय निकलता है कि हवा तूफ़ान के रूप में आये, पानी सुनामी के रूप में, अग्नि भीषण गर्मी के रूप में, अंबर तेज़ बारिश के रूप में और पृथ्वी ग्रास के रूप में सब मनुष्यों को अपने अंदर समा ले। जैसे ही मानव की समझ में आ जाये कि यह सब क्यों हो रहा है? बस वहीं पर रूक जाना!
गौरैया को न्याय मिल जाता है और वह एक नये पेड़ पर अपना घोंसला बनाती है इस उम्मीद से कि शायद अब कोई उसका घोंसला नहीं तोड़ेगा!

मौलिक रचना
नूतन गर्ग (दिल्ली)

*नूतन गर्ग

दिल्ली निवासी एक मध्यम वर्गीय परिवार से। शिक्षा एम ०ए ,बी०एड०: प्रथम श्रेणी में, लेखन का शौक