तन्हाई
देते हो तन्हाई
फिर उसपर हक जताते हो
दूर होकर भी क्यों
मेरे अकेलेपन में शामिल होते हो
दिल के रिश्ते को नामंजूर कर दिया
पर नजरों से वफा लुटाते हो
इजहार भी नहीं करते और इंकार भी
बस खामोशी से
जज्बातों की बात कहते जाते हो
क्या समझूं तुम्हारे इस अंदाज को
प्यार के सारे दस्तूर निभाते हो
पर मुहब्बत नाम देने से डरते हो
मान रहे हो बात अपने मन की, मानो
पर जब दिल की सुनोगे तब
एकपल भी मुझसे दूर नहीं रह पाओगे।
(शाम के चाय के साथ की कविता😊)