कविता धूप *बबली सिन्हा 13/04/202114/04/2021 शुरू हो रही गर्मी चिलचिलाती धूप कहर बरसाएगी छत जिनके सर पर है वे खिड़की से झांकते नजर आएंगे पर जिनके झोपड़े टूटे है खुला आसमान ही ठिकाना है उन्हें तो तपने की आदत है फिरभी शायद ! बची खुची सुकून जून-जुलाई की आग निगल लेती होगी।