कविता

धूप

शुरू हो रही गर्मी
चिलचिलाती धूप
कहर बरसाएगी
छत जिनके सर पर है
वे खिड़की से झांकते नजर आएंगे
पर जिनके झोपड़े टूटे है
खुला आसमान ही ठिकाना है
उन्हें तो तपने की आदत है
फिरभी शायद !
बची खुची सुकून जून-जुलाई की आग निगल लेती होगी।

*बबली सिन्हा

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