कविता

बसंत की बहार

है बसंत की बहार
नव पल्लव कर रहा पुकार
कोयल की कूक मन को भाय
आश लिए प्रीतम को निहार।

है चारों तरफ खुशहाली
नए नए पत्तों में कुसमित कली
आओ मिलन की घड़ी है प्यारे
तेरी बाट निहारूं बनकर परी।

है छायी बसंती बहार
लूटे सखियां सब लहार
उपवन में फूल खिले सजनी
मन मोहे देख चांद सितार।

है कितना मनोरम दृश्य
तुझे पुकरू बनकर मित
आ जाओ मेरे गिरधर
बाहों में कर लू चुम्बन।
— विजया लक्ष्मी

बिजया लक्ष्मी

बिजया लक्ष्मी (स्नातकोत्तर छात्रा) पता -चेनारी रोहतास सासाराम बिहार।