बाल कविता

प्यासा कौआ

पंचतंत्र की कथा सुनाता

बच्चों सुन लो ध्यान लगाय
ज्ञान धर्म की बातें सुनना
शिक्षा कभी व्यर्थ न जाय
कौआ एक बहुत प्यासा था
पानी को वह तरस रहा था
सूख गए सब ताल तलैया
नभ से आग ही बरस रहा था
एक खेत में घड़ा पड़ा देख
कौआ मन हर्षाया था
उस में थोड़ा पानी देख के
उसका मन मुरझाया था
किया प्रयास बहुत कौवे ने
पर वह जल से दूर ही था
संकरा मुँह था घड़े का जिससे
वह काफी मजबूर भी था
कर प्रयास वह थका मगर
 फिर हिम्मत उसने ना हारी
जुटा फिर वह नव प्रयास में
तज के अपनी लाचारी
कंकड़ की ढेरी से कंकड़
एक एक कर वह लाया
कंकड़ के जाने से पानी
घड़े में ऊपर तक आया
पी कर मन भर वह पानी
कौआ खुद ही मुस्काया था
उसकी छोटी सी बुद्धि ने
उसका प्राण बचाया था
चाहे मुश्किल कैसी भी हो
संयम नहीं कभी तुम खोना
कर प्रयास अंतिम दम तक तुम
कौवे सम ही सफल होना

*राजकुमार कांदु

मुंबई के नजदीक मेरी रिहाइश । लेखन मेरे अंतर्मन की फरमाइश ।

One thought on “प्यासा कौआ

  • चंचल जैन

    बहुत खूब।सादर

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