कविता

संघर्ष

जीवन और संघर्ष
सिक्के के दो पहलू हैं,
जीवन तो
संघर्ष का ही दूसरा नाम है,
संघर्ष से डरना, घबराना कैसा?
संघर्ष करना, हारना
और फिर हारना तो अतिशयोक्ति नहीं
परंतु हरहाल मे
जीतने तक संघर्ष करना
ही तो बुद्धिमानी है,
हमारे मजबूत हौसले की
यही तो निशानी है।
संघर्ष के डर से
हार मान लेना नादानी है,
जीवन में असफलता की
यही तो कहानी है।
टूटना, बिखरना, कमजोर पड़ना
जीवन का हिस्सा है,
मगर इस डर से मुँह छिपाकर
बैठ जाना भला कब अच्छा है?
संघर्ष हमारे हौसले
धैर्य का परीक्षक है,
हार की कगार तक पहुंच कर भी
जीत की जिद करते रहना
बहुत अच्छा है।
हमारा संघर्ष रंग लायेगा,
देर सबेर हमारे संघर्ष का फल
आखिरकार हमें मिल ही जायेगा।
संघर्ष की अहमियत का
हमें अहसास हो जायेगा,
तब जाकर हमारी जीत का
असली आनंद आयेगा,
संघर्ष का मंतव्य
बहुत कुछ कह पायेगा,
जीवन खुशियों से भर जायेगा।

*सुधीर श्रीवास्तव

शिवनगर, इमिलिया गुरूदयाल, बड़गाँव, गोण्डा, उ.प्र.,271002 व्हाट्सएप मो.-8115285921