कविता

डर के आगे जीत है

उठो ! आगे बढ़ो
हुँकार भरो,प्रस्थान करो,
डर डरकर जीना छोड़ो
छुप छुप कर रहना छोड़ो।
हौसला करो
हर मुश्किल से लड़ो
बुलंद हौसले के साथ आगे बढ़ो
दो दो हाथ करो।
क्या पता जीत तुम्हारी हो?
तुम्हारी कमजोरी ही
तम पर पड़ रही भारी हो।
तुम कमजोर नहीं
निडर, निर्भीक, शक्तिशाली हो
बस अपने सोये हौंसले को जगाओ
अपने मन में बैठे डर को भगाओ।
उहापोह से बाहर निकलो
आगे बढ़ो, सामना करो
डरकर हारने का न विचार करो
क्योंकि डर के आगे जीत है
दुनिया की यही रीति है
जीत से ही तो तुम्हारी प्रीत हैै।

*सुधीर श्रीवास्तव

शिवनगर, इमिलिया गुरूदयाल, बड़गाँव, गोण्डा, उ.प्र.,271002 व्हाट्सएप मो.-8115285921