विरह
काली घटाएं छाए
झूमे झूमे बदरा
घन घन कर बरसे
शीतल करें तन बदन
भीगे बारिश में जो
तन और मन
विरहन की
विरह ज्वाला भड़काए
परदेश गए बालम के
होंठों के चुम्बन की ऊष्मा
बाहों के आलिंगन के घेरे
आंखों में स्वप्न बन तैर जाएं
तन की ज्वाला
मन की ज्वाला
दोनों भड़के
इस बारिश में