लेखसामाजिक

ईश्वर के कार्यकर्ता हैं…..समाज सेवक

“परहित सरिस धरम नहीं भाई” दूसरों की भलाई और सेवा से बढ़कर कोई धर्म नहीं है। जो मनुष्य अपनी बुद्धि, शक्ति एवं धन का जितना उपयोग बिना भेदभाव के समाज सेवा के लिए करता है उतना ही वह मनुष्यत्व से देवत्व की ओर बढ़ने लगता है और जहाँ मनुष्य ने अपनी स्वार्थी पृवृत्ति के वशीभूत हो लालच लोलुपता में पड़कर आसुरी कृत्य करना आरम्भ किया वहीं उसका पतन प्रारम्भ हो जाता है।

दया, करूणा, परोपकार ही वह गुण हैं जो इस मनुष्य देह को मनुष्यत्व प्रदान करते हैं। प्राणीमात्र के प्रति दया का भाव ही सर्वोच्च भाव है।

वर्तमान समय में कई सामाजिक संस्थाएं और समाज के कई समृद्ध लोग मानव सेवा में लगे हुए हैं। भूखे को भोजन और बीमारों के लिए उपयोगी आवश्यक सामग्रियों की जानकारी एवं उनके लिए जीवनोपयोगी साधन उपलब्ध कराने में सहायता कर रहे हैं।

कई ऐसे भामाशाह भी हैं जो अपने नाम और काम का बखान किये बिना सेवा में लगे हुए हैं। रात के समय निकलते हैं और सडकों के किनारे भूखे बैठे हुए गरीब बच्चों और बूढ़ों को भोजन बाँटते हैं। ऐसे लोगों का जीवन धन्य है भूखे के पेट में अन्न ब्रह्म की स्थापना करने से बढ़ा न तो कोई यज्ञ है और न ही पूजा। ऐसे दैवीय गुणों से परिपूर्ण व्यक्तियों के सामने मन स्वत ही नतमस्तक हो जाता है।

सेवा का संबंध केवल धन से ही नहीं है मन से भी है दुखी एवं परेशान लोगों से सांत्वना के दो बोल साझा कर लेना भी सेवा है। दिवंगतों की सद्गति व शांति के लिए प्रार्थना, जप, यज्ञ आदि करना भी सेवा का ही स्वरुप है।  हम जिस भी प्रकार से रोगियों और दुखियों की सेवा में भागीदार बन सकते हों हमें सरकारी निर्देशों का पालन करते हुए उनसे जुड़ने का प्रयास करना चाहिए। रामजी की सेना में हमुनान जी जैसे वीर महाबली थे तो एक छोटी सी गिलहरी भी थी। श्रीराम काज में सबकी अपनी-अपनी सेवा थी।

इस विपत्ति काल में मानवता की सेवा के लिए कदम बढ़ाने वाले इन महानुभावों को ईश्वर ने अपने राहत कार्यों के लिए विशेष रूप से चुना है। ये अत्यंत भाग्यशाली लोग हैं जो रोग, भूख एवं भय से त्रस्त ईश्वर के मानवीय रूप की सेवा में लगे हैं। ये सभी रामजी की सेना के कार्यकर्ता हैं जो कोरोना रुपी रावण से युद्ध कर रहे लोगों की सहायता और सेवा में लगे हुए हैं।

इस समय जो लोग मानवीय सेवा करने में सक्षम हैं भूखे को भोजन, वस्त्र या जीवनोपयोगी वस्तुएँ  दे सकते हैं यदि वह ऐसा नहीं कर रहे हैं तो ये उनका दुर्भाग्य है। ऐसे व्यक्ति धन एकत्रित करने के बाद भी शांति एवं सुकून का अनुभव नहीं कर सकते। जिस मनुष्य के मन में दूसरों के दुःख देखकर दया भाव नहीं उमड़ता, उनकी सहायता के लिए जो आगे नहीं बढ़ते वे मृतप्राय: हैं।

पुरुषोत्तम श्रीराम हमारे आदर्श क्यों बने क्योंकि उन्होंने अपने जीवन में मनुष्यत्व का अवलंबन लिया और अपने श्रेठ कृतित्व से समाज और जन कल्याणकारी कार्य किये।  उन्होंने बिना किसी भेद भाव के समाज के छोटे से छोटे और बड़े से बड़े हर तबके को साथ लिया और उनकी मदद की इसीलिए आज भी कृपासिंधु श्रीराम को याद करके हमारा मन अहोभाव से भर जाता है ।

ये समय श्री राम के उन्हीं आदर्शों के अनुसरण एवं अनुकरण का काल है। हम समाज में क्या भूमिका निभाना चाहते हैं ये हमें निश्चित करना है।

पंकज कुमार शर्मा 'प्रखर'

पंकज कुमार शर्मा 'प्रखर' लेखक, विचारक, लघुकथाकार एवं वरिष्ठ स्तम्भकार सम्पर्क:- 8824851984 सुन्दर नगर, कोटा (राज.)