कविता

ये जिंदगी

पल दो पल की ये जिंदगी
आज बचपन का लड़कपन ,
फिर कल मदहोश जवानी
परसों बुढ़ापा, फिर खत्म तेरी कहानी।
तो चलो आज को जी भर के हंसकर जिए
फिर ना मिलेगा ये वक्त सुहाना
इस वक्त में है खो जाना, सब गम को है भूल जाना।
कल की बात हम क्यों करें, कल की बात थी पुरानी
आज और अभी मे जीकर इस वक्त को बनानी है सुहानी।
न कुछ लेकर आए थे और न लेकर जाऐंगे
सबके साथ मिलजुलकर चलते चले
जिंदगी का ये सफर यूँ ही काटते चलें।

— मृदुल शरण