कविता

अपने

कौन अपना कौन पराया
सोचना है सोचते रहिए
ये बेकार की बातें।
न कोई अपना न ही पराया
जो हमें अपना समझे ही नहीं
सुख दु:ख भी मिलकर बाँटे,
अच्छा बुरा समझाये
हमारे गलत कामों की राहों में
दीवार बन जाये,
अच्छे कामों में
समय के अनुकूल
साथ निभाये, हौसला बढ़ाये
वो ही अपना कहलाये।
अपना होने का दँभ भरे
स्वार्थ का लबादा ओढ़े
अपना अपना रटता हो
विश्वास दिलाता रहे
नुकसान भी पहुँचाता रहे
गलत राहों पर भी ले जाये
ऊपर से हौसला भी बढ़ाये,
अच्छे कामों और मेरी उन्नति में
रोड़ा अटकाए वो नहीं अपने।
अपने सिर्फ़ अपने होते हैं
आजकल तो अपने भी सपने होते हैं,
अरे अपने तो वो होते हैं
जो रिश्ते नातों में नहीं होते
फिर भी अपनों से भी अपने होते हैं,
अपना बनकर चालें नहीं चलते
दूर हो जायें तो सपना बन जाते हैं
आँखों में आंसू बन
हमेशा याद आते हैं,
सदा दिलों में बसे रहते हैं
बस ! वो ही अपने हैं।

*सुधीर श्रीवास्तव

शिवनगर, इमिलिया गुरूदयाल, बड़गाँव, गोण्डा, उ.प्र.,271002 व्हाट्सएप मो.-8115285921