इतिहास

‘‘नग्गर’’-कुल्लू के राजाओं की प्राचीन राजधानी 

हिमालय पर्वत की ऊँची-ऊँची हिम-शृंखलाओं में स्थित कुल्लू जनपद का एक
कस्बा है नग्गर। समुद्रतल से 1600 मीटर की ऊँचाई पर बसा यह कस्बा विभिन्न
कारणों से पर्यटकों का ध्यान आकर्षित करता है। इन कारणों में इसकी
प्राड्डतिक सुन्दरता और सुषमा तो है ही, परन्तु इसके पौराणिक एवं
ऐतिहासिक महत्व को भी नकारा नहीं जा सकता। फूलों से लदे पेड़ों और झाड़ियों
से भरी घाटियों, अगनित जड़ी-बूटियों, के साथ हीं यहाँ के मन्दिरों की
अनूठी वास्तुकला भी घाटियों के आकर्षण का केंद्र है। इसके साथ ही कुल्लू
के चप्पे-चप्पे में फैला वह इतिहास है जो इस क्षेत्र को महाभारत काल से
जोड़ता है।
नग्गर नाम का यह कस्बा किसी समय कुल्लू के राजाओं की राजधानी रहा है।
वाराहमिहिर की वष्हत्त संहिता के अनुसार व्यास नदी की ऊपरी घाटियों में
रहने वाली जाति का नाम ‘कुलूत’ था। इस जाति के राजा पर्वतेश्वर से अर्जुन
का युद्ध हुआ। इसी जाति का एक अन्य राजा ‘क्षेम धूर्ति’ महाभारत के युद्ध
में मारा गया। यहाँ से प्रथम शताब्दि के कुछ सिक्के मिले हैं जिन पर
‘‘राजा कोलूतस्य वीर यशस्य’’ लिखा है। सप्त सिंधु की सात नदियों में से
व्यास अथवा विपाशा (तत्कालीन अर्जिका) एक नदी रही है। जो इसी क्षेत्र में
बहती है। इतिहास के पंडितों के अनुसार प्रयाग से आकर वहिंग मणिपाल ने आपस
में लड़ने-झगड़ने वाले छोटे-छोटे राणा-ठाकुरों को जीत कर यहाँ पाल वंश की
स्थापना की इस वंश के 18 राजाओं ने कुल्लू पर राज्य किया। इसके पश्चात्
सिंह वंश के 16 राजाओं में अंतिम राजा जीतसिंह हुआ। 1840 ईस्वी में जीत
सिंह को परास्त करके सिक्खों ने कुल्लू की सत्ता पर कब्ज़ा कर लिया।
सिंहवंश में हुए राजा सिद्धि सिंह ने (1500-1540 ई.) यहाँ एक तीन मंज़िला
दुर्ग बनवाया। इसके 64 कमरों में से 18 कमरे रानियों के हैं। कहा जाता है
कि इस दुर्ग में प्रयोग किए गये पत्थरों को व्यास नदी के दाहिने किनारे
पर ‘‘बड़ाग्रां गढ़ ढेक’’ से एक लम्बी मानव शृंखला बनाकर पहाड़ की इस ऊँची
चोटी पर पहुँचाया गया था।
इतिहासकारों के अनुसार सत्रहवीं शताब्दि के मध्य तक इस दुर्ग को राज्य
मुख्यालय के रूप में प्रयोग में लाया जाता रहा। बाद में राजा जगत सिंह के
द्वारा राज्य मुख्यालय के कुल्लू में स्थानान्तिरत होने के बाद भी
ब्रिटिश अधिग्रहण से पूर्व तक भी इस भवन को ग्रीष्म कालीन राजधानी के रूप
में प्रयोग में लाया जाता रहा।
सिक्खों के अधिकार में आ जाने के बाद 1846 ई. में राजा ज्ञानसिंह ने इस
सुन्दर दुर्ग को प्रथम अंग्रेज़ कमिश्नर मेजर हेय को एक गन के बदले में
बेच दिया। उस  समय इस विशाल दुर्ग की छत स्लेट पत्थरों की थी। जिसे
अंग्रेज़ों ने लोहे की चादरों से बदल दिया। कमरों को गर्म रखने के लिए इस
दुर्ग के कमरों में अंगीठियाँ बनाई गईं।
भारत के स्वतन्त्र होने और पहाड़ी रियासतों के भारत संघ में विलय के बाद
यह दुर्ग पर्यटन विभाग के अधिकार में दे दिया गया। वर्तमान में इस भवन
में होटल चलाया जा रहा है जिसमें 6 सैट हैं। इसी होटल के प्रांगण में
जगती पाट नाम का एक छोटा सा प्राचीन मन्दिर भी स्थापित है। एक कमरे के इस
मन्दिर में 5/8/6 की घनाभ काली चट्टान रक्खी है। इस शिला के चारों ओर
मन्दिर का निर्माण 1996 ईस्वी में कराया गया। पहाड़ी शैली के इस मन्दिर
में लगी लकड़ी पर किया गया सुन्दर नक्काशी का काम देखते ही बनता है।
मन्दिर के बाहर ही दायीं ओर एक बड़े से शिला लेख पर इस भवन का इतिहास लिखा
गया है। इस महल अथवा दुर्ग जिसे हम इस समय नग्गर कैसल के नाम से जानते
हैं, के धरातल पर बने कमरों को संग्रहालय के तौर पर प्रयोग में लाया जाता
है। आँगन में बहुत सी खण्डित-अखण्डित मूर्तियाँ यत्र-तत्र रक्खी हुई हैं।
दुर्ग से थोड़ी ही दूर ढलान पर पूर्व दिशा में शिखरष्शैली का प्राचीन
विष्णु मन्दिर आज भी अपने पूर्ण वैभव के साथ उपस्थित है। कला के इन
अभूतपूर्व उदाहरणों से कुल्लू के राजाओं की कला के प्रति रुचि और धर्म
निष्ठा का इतिहास जाना जा सकता है। दुर्ग से कुछ ही दूरी पर चढ़ाई की दिशा
में रोरिख कलादीर्घा है।
रूसी मूल के अमर कलाकार निकोलाई रोरिख ने इस भवन को मण्डी के राजा से
खरीदा और अपनी साधना स्थली बनाया। वह आजीवन सपरिवार इसी भवन में रहे। उस
महान कलाकार के दिवंगत हो जाने के बाद उनके उत्तराधिकारी रूस लौट गये।
वर्तमान में रोरिख के बनाये 45 चित्र और उनकी जंगलों से एकत्र की गई
शिलाओं पर उत्कीर्ण ढेरों मूर्तियाँ आपको यहाँ मिल जाएंगी। रोरिख के भवन
के प्रांगण में ही एक अति-प्राचीन मन्दिर भी मौजूद है।
दस कदम चढ़ाई चढ़ने पर आपको रोरिख नाट्यशाला के दर्शन होंगे। इसके प्रांगण
में सैकड़ों की संख्या में शिलाओं पर उकेरी प्राचीन मूर्तियाँ पंक्तिबद्ध
रक्खी हुई हैं जिनके रचयिताओं का कोई अता-पता नहीं है। इस नाट्यशाला का
विशाल भवन आबादी से अलग निर्जन स्थान पर है कभी इस भवन को भूत बंग्ला कहा
जाता था। इस कौतुकालय में हिमाचल के विभिन्न भागों के परिधान, मुखौटे,
गुड़ियाँ, कठपुतलियाँ, बर्तन एवं रोरिख कालीन अन्य चित्रकारों के बनाए
चित्र भी रखे हुएहैं।
रोरिख कला दीर्घा और कौतुकालय का एक ही टिकट होता है। यहाँ रोरिख के
चित्रों की प्रतिलिपियाँ और उनका साहित्य भी बेचा जाता है। नग्गर पहुँचने
के लिए मुख्य मार्ग तो चण्डीगढ़ से कुल्लू होकर ही है किन्तु पठानकोट की
तरफ़ से आने वालों को चण्डीगढ़ नहीं जाना पड़ता। राष्ट्रीय राजमार्ग नं-21
पर बसे कुल्लू शहर के लिए निकटतम रेलवे स्टेशन जोगिन्दर नगर है, जो
कुल्लू से 125 कि.मी. दूर पठानकोट रोडपर स्थित है पठानकोट से आने वाले
इधर से आ सकते हैं। चण्डीगढ़ के रास्ते में कीरतपुर रेलवे स्टेशन पड़ता है
जो कुल्लू से 204 कि.मी. की दूरी पर है। वायुयान द्वारा भुन्तर तक आया जा
सकता है। भुन्तर से कुल्लू की दूरीमात्र 10 कि.मी. रह जाती है। इसके
अतिरिक्त दिल्ली और चण्डीगढ़ से सीधी बस सेवा भी है।
कुल्लू से नग्गर की दूरी 22 कि.मी. है, जिसके लिए बसें और टैक्सियाँ हर
समय उपलब्ध रहती हैं। कुल्लू, भुन्तर और नग्गर में ठहरने के लिए अनेक
होटल उपलब्ध हैं।
अक्तूबर से फ़रवरी तक यहाँ शीत रितु रहती है और हिमपात होता है। सारा वर्ष
ही यहाँ गर्म ऊनी वस्त्रों की आवश्यकता होती है। लोग नृत्य और गायन के
शौकीन हैं इसके साथ ही आधुनिक मनोरंजन के क्षेत्र में भी पदार्पण हुआ है।
अब व्यास नदी में राफ्टिंग का भी चलन जोरों से हो गया है, हैली स्कीइंग
और पर्वतारोहण भी होता है।

— आशा शैली

*आशा शैली

जन्मः-ः 2 अगस्त 1942 जन्मस्थानः-ः‘अस्मान खट्टड़’ (रावलपिण्डी, अब पाकिस्तान में) मातृभाषाः-ःपंजाबी शिक्षा ः-ललित महिला विद्यालय हल्द्वानी से हाईस्कूल, प्रयाग महिलाविद्यापीठ से विद्याविनोदिनी, कहानी लेखन महाविद्यालय अम्बाला छावनी से कहानी लेखन और पत्रकारिता महाविद्यालय दिल्ली से पत्रकारिता। लेखन विधाः-ः कविता, कहानी, गीत, ग़ज़ल, शोधलेख, लघुकथा, समीक्षा, व्यंग्य, उपन्यास, नाटक एवं अनुवाद भाषाः-ः हिन्दी, उर्दू, पंजाबी, पहाड़ी (महासवी एवं डोगरी) एवं ओडि़या। प्रकाशित पुस्तकंेः-1.काँटों का नीड़ (काव्य संग्रह), (प्रथम संस्करण 1992, द्वितीय 1994, तृतीय 1997) 2.एक और द्रौपदी (काव्य संग्रह 1993) 3.सागर से पर्वत तक (ओडि़या से हिन्दी में काव्यानुवाद) प्रकाशन वर्ष (2001) 4.शजर-ए-तन्हा (उर्दू ग़ज़ल संग्रह-2001) 5.एक और द्रौपदी का बांग्ला में अनुवाद (अरु एक द्रौपदी नाम से 2001), 6.प्रभात की उर्मियाँ (लघुकथा संग्रह-2005) 7.दादी कहो कहानी (लोककथा संग्रह, प्रथम संस्करण-2006, द्वितीय संस्करण-2009), 8.गर्द के नीचे (हिमाचल के स्वतन्त्रता सेनानियों की जीवनियाँ-2007), 9.हमारी लोक कथाएं भाग एक से भाग छः तक (2007) 10.हिमाचल बोलता है (हिमाचल कला-संस्कृति पर लेख-2009) 11. सूरज चाचा (बाल कविता संकलन-2010) 12.पीर पर्वत (गीत संग्रह-2011) 13. आधुनिक नारी कहाँ जीती कहाँ हारी (नारी विषयक लेख-2011) 14. ढलते सूरज की उदासियाँ (कहानी संग्रह-2013) 15 छाया देवदार की (उपन्यास-2014) 16 द्वंद के शिखर, (कहानी संग्रह) प्रेस में प्रकाशनाधीन पुस्तकेंः-द्वंद के शिखर, (कहानी संग्रह), सुधि की सुगन्ध (कविता संग्रह), गीत संग्रह, बच्चो सुनो बाल उपन्यास व अन्य साहित्य, वे दिन (संस्मरण), ग़ज़ल संग्रह, ‘हण मैं लिक्खा करनी’ पहाड़ी कविता संग्रह, ‘पारस’ उपन्यास आदि उपलब्धियाँः-देश-विदेश की पत्रिकाओं में रचनाएँ निरंतर प्रकाशित, आकाशवाणी एवं दूरदर्शन के विभिन्न केन्द्रों से निरंतर प्रसारण, भारत के विभिन्न प्रान्तों के साहित्य मंचों से निरंतर काव्यपाठ, विचार मंचों द्वारा संचालित विचार गोष्ठियों में प्रतिभागिता। सम्मानः-पत्रकारिता द्वारा दलित गतिविधियों के लिए अ.भा. दलित साहित्य अकादमी द्वारा अम्बेदकर फैलोशिप (1992), साहित्य शिक्षा कला संस्कृति अकादमी परियाँवां (प्रतापगढ़) द्वारा साहित्यश्री’ (1994) अ.भा. दलित साहित्य अकादमी दिल्ली द्वारा अम्बेदकर ‘विशिष्ट सेवा पुरुस्कार’ (1994), शिक्षा साहित्य कला विकास समिति बहराइच द्वारा ‘काव्य श्री’, कजरा इण्टरनेशनल फि़ल्मस् गोंडा द्वारा ‘कलाश्री (1996), काव्यधारा रामपुर द्वारा ‘सारस्वत’ उपाधि (1996), अखिल भारतीय गीता मेला कानपुर द्वारा ‘काव्यश्री’ के साथ रजत पदक (1996), बाल कल्याण परिषद द्वारा सारस्वत सम्मान (1996), भाषा साहित्य सम्मेलन भोपाल द्वारा ‘साहित्यश्री’ (1996), पानीपत अकादमी द्वारा आचार्य की उपाधि (1997), साहित्य कला संस्थान आरा-बिहार से साहित्य रत्नाकर की उपाधि (1998), युवा साहित्य मण्डल गा़जि़याबाद से ‘साहित्य मनीषी’ की मानद उपाधि (1998), साहित्य शिक्षा कला संस्कृति अकादमी परियाँवां से आचार्य ‘महावीर प्रसाद द्विवेदी’ सम्मान (1998), ‘काव्य किरीट’ खजनी गोरखपुर से (1998), दुर्गावती फैलोशिप’, अ.भ. लेखक मंच शाहपुर (जयपुर) से (1999), ‘डाकण’ कहानी पर दिशा साहित्य मंच पठानकोट से (1999) विशेष सम्मान, हब्बा खातून सम्मान ग़ज़ल लेखन के लिए टैगोर मंच रायबरेली से (2000)। पंकस (पंजाब कला संस्कृति) अकादमी जालंधर द्वारा कविता सम्मान (2000) अनोखा विश्वास, इन्दौर से भाषा साहित्य रत्नाकर सम्मान (2006)। बाल साहित्य हेतु अभिव्यंजना सम्मान फर्रुखाबाद से (2006), वाग्विदाम्बरा सम्मान हिन्दी साहित्य सम्मेलन प्रयाग से (2006), हिन्दी भाषा भूषण सम्मान श्रीनाथद्वारा (राज.2006), बाल साहित्यश्री खटीमा उत्तरांचल (2006), हिन्दी साहित्य सम्मेलन प्रयाग द्वारा महादेवी वर्मा सम्मान, (2007) में। हिन्दी भाषा सम्मेलन पटियाला द्वारा हज़ारी प्रसाद द्विवेदी सम्मान (2008), साहित्य मण्डल श्रीनाथद्वारा (राज.) सम्पादक रत्न (2009), दादी कहो कहानी पुस्तक पर पं. हरिप्रसाद पाठक सम्मान (मथुरा), नारद सम्मान-हल्द्वानी जिला नैनीताल द्वारा (2010), स्वतंत्रता सेनानी दादा श्याम बिहारी चैबे स्मृति सम्मान (भोपाल) म.प्रदेश. तुलसी साहित्य अकादमी द्वारा (2010)। विक्रमशिला हिन्दी विद्यापीठ द्वारा भारतीय भाषा रत्न (2011), उत्तराखण्ड भाषा संस्थान द्वारा सम्मान (2011), अखिल भारतीय पत्रकारिता संगठन पानीपत द्वारा पं. युगलकिशोर शुकुल पत्रकारिता सम्मान (2012), (हल्द्वानी) स्व. भगवती देवी प्रजापति हास्य-रत्न सम्मान (2012) साहित्य सरिता, म. प्र. पत्रलेखक मंच बेतूल। भारतेंदु साहित्य सम्मान (2013) कोटा, साहित्य श्री सम्मान(2013), हल्दीघाटी, ‘काव्यगौरव’ सम्मान (2014) बरेली, आषा षैली के काव्य का अनुषीलन (लघुषोध द्वारा कु. मंजू षर्मा, षोध निदेषिका डाॅ. प्रभा पंत, मोतीराम-बाबूराम राजकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय हल्द्वानी )-2014, सम्पादक रत्न सम्मान उत्तराखण्ड बाल कल्याण साहित्य संस्थान, खटीमा-(2014), हिमाक्षरा सृजन अलंकरण, धर्मषाला, हिमाचल प्रदेष में, हिमाक्षरा राश्ट्रीय साहित्य परिशद द्वारा (2014), सुमन चतुर्वेदी सम्मान, हिन्दी साहित्य सम्मेलन भोपाल द्वारा (2014), हिमाचल गौरव सम्मान, बेटियाँ बचाओ एवं बुषहर हलचल (रामपुर बुषहर -हिमाचल प्रदेष) द्वारा (2015)। उत्तराखण्ड सरकार द्वारा प्रदत्त ‘तीलू रौतेली’ पुरस्कार 2016। सम्प्रतिः-आरती प्रकाशन की गतिविधियों में संलग्न, प्रधान सम्पादक, हिन्दी पत्रिका शैल सूत्र (त्रै.) वर्तमान पताः-कार रोड, बिंदुखत्ता, पो. आॅ. लालकुआँ, जिला नैनीताल (उत्तराखण्ड) 262402 मो.9456717150, 07055336168 asha.shaili@gmail.com