धर्म-संस्कृति-अध्यात्म

संतान धर्म

” मैं तो मंदिर गया, पूजा आरती की, पूजा करते

हुए यह ख्याल आ गया

कभी मां-बाप की सेवा कि ही नहीं, सिर्फ पूजा

के करने से से क्या फायदा”

यहां संत कबीर दास जी के दोहे बड़ी ही सुंदरता से से मनुष्य को उनके कर्तव्य के प्रति दर्शाते हैं| उनका कहना है कि | हमने जीवन में यदि अपने माता-पिता को सम्मान ना दिया ना दिया दिया ,उनकी सेवा ना की की ,तो हमें कभी भी भगवान की प्राप्ति हो ही नहीं सकती | हम मंदिर में पूजा अर्चना करके भगवान को भगवान को करके भगवान को भगवान को प्रसन्न करने का प्रयास अवश्य करते हैं | परंतु अपने ही घर में उपस्थित भगवान समान माता पिता की निंदा करेंगे , उनका अनादर करेंगे , या उनकी सेवा ही ना करेंगे तो सिर्फ मंदिर में ही पूजा करने से क्या करने से क्या लाभ होगा और यही संपूर्ण सत्य है |

एक संतान का सर्वप्रथम धर्म है कि वह अपने माता पिता पिता अपने माता पिता पिता की निस्वार्थ सेवा करें | उदाहरण के रूप में श्रवण कुमार एक पौराणिक पात्र है | वह आज भी मातृ पितृ पितृ भक्ति के लिए जाने जाते हैं | हिंदू धर्म ग्रंथ रामायण में भी उनका उल्लेख है | जो अपने माता-पिता से अतुलनीय प्रेम करते थे| उनके माता-पिता नेत्रहीन थे इसलिए वो उनकी अत्यंत श्रद्धा पूर्वक सेवा करते थे और उनकी हर इच्छाओं की पूर्ति करते थे | बालपन से ही हर विद्यार्थी को उनकी गाथा सुनाई जाती है | ताकि हर व्यक्ति को श्रवण कुमार से प्रेरणा मिलेगी की एक एक पुत्र का सर्वप्रथम धर्म क्या है और अपने माता-पिता के प्रति हर कर्तव्य कैसे निभाया जाता है | माना कि माता पिता के किए गए हर कर्म का मोल का मोल संतान कभी नहीं चुका सकता सकता परंतु वह उनका सहारा तो बन सकती है| जब भी कभी उनका तन साथ ना दे दे दे तो उनकी बैसाखी बन सकते हैं | जब भी वे टूट जाए और असहाय महसूस करें तो उनके सारथी बन सकते हैं | उन्हें आनंद देकर उनकी मन की पीड़ा की पीड़ा दूर की जा सकती है |

उन्हें हर्षित देखकर मन को जो प्रसन्नता प्राप्त होगी वह पूरे संसार में किसी भी वस्तु में खोजने पर भी नहीं मिल सकती | हर संतान को अपनी पूरी मेहनत और लगन से कामयाबी प्राप्त करनी चाहिए जिससे हर माता-पिता को गर्व हो | एक संतान को उसकी पहचान अपने पिताजी से मिलते हैं | परंतु एक पिता के लिए गर्व की बात यह है कि उन्हें अपनी पहचान अपनी संतान के अच्छे कर्मों से मिले और वह गर्व से उनका माथा उठा सके मानों उनकी जीवन का उद्देश्य पूर्ण हो गया हो |

राजा राम से बड़ा उदाहरण हमारे जीवन में कोई हो ही नहीं सकता | वह अपने पिता के वचनों की पूर्ति के लिए 14 वर्ष वनवास का दुख भोगने चले गए और राजा दशरथ अपने पुत्र के विरह को ना सके सके व अपने प्राण त्याग दिए | बड़े ही भाग्यशाली थे राजा दशरथ जो उन्हें ऐसी संतान प्राप्त हुई | राजा राम स्वयं स्वयं नारायण थे ,भगवान होकर भी उन्होंने अपना संतान धर्म पूरी श्रद्धा से निभाया और हम तो साधारण मानव है फिर भी अपने कर्तव्य से दूर कैसे भाग जाते हैं | हम सबको उनसे प्रेरणा लेनी चाहिए|

संसार में बहुत सारे मनुष्य है जिन्हें अपने माता-पिता से नहीं बल्कि उनकी माया से प्रेम है| उन सभी लोगों को एक प्रश्न पूछना चाहूंगी |जिस व्यक्ति ने आप के उद्धार के लिए धन छोड़ रखा है वह स्वयं कितना श्रेष्ठ होगा कभी इस बात पर तो विचार कीजिए ? आपको बस उनके धन की लालसा है उस व्यक्ति की क्यों नहीं ? धन तो आज आपके समक्ष है और कल नहीं होगा परंतु आपके माता-पिता तो सदैव आपका साथ देंगे हमेशा आप की विजय की प्रार्थना करेंगे फिर भी आप के लिए धन ही आपका जीवन क्यों है ?

— रमिला राजपुरोहित

 

 

 

रमिला राजपुरोहित

रमीला कन्हैयालाल राजपुरोहित बी.ए. छात्रा उम्र-22 गोवा