लघुकथा

लघु -आबाद रहे तू

गलवान घाटी में भारतीय सेना शांति से अपने खेमे में थी और अपनी सीमा में लहराते अपने तिरंगे को देख खुश हो रही थी | जश्न का माहौल था कोई अपनी थाली को ढपली की तरह बजा रहा था, कोई गा रहा था और कोई मस्त होकर के आजादी के गीतों पर नाच रहा था | अचानक; कैप्टन ! चीनी अपनी हद पार कर तिरंगे की तरफ आ रहे हैं क्या?? क्या ? कह रहे हो ss !सब दौड़ पड़ते हैं थाली कहीं गिरती है चम्मच कहीं गिरता है |ठहरो ! दुस्साहस मत करना |
चीनी और भारतीयों के बीच झड़प होने लगती है |
बात बढ़ती ही जा रही थी |चीनी फायरिंग पर उतर आए थे | तभी एक दहाड़ गूंजती है , मां भारती की तरफ उठने वाले हर हाथ को काट दो | झड़प हाथापाई में बदल जाती है अपने देश की रक्षा करते हुए भारत के 20 जवान शहीद हो गए थे पर दुश्मन को मुंह की खानी पड़ी |
बिहार ,पंजाब रेजीमेंट बंगाल, ओडिशा , तेलंगाना के साथ आज पूरा भारत शोक में डूब गया था पर मस्तक पर विजय गर्व की आभा दमक रही थी तिरंगा ऊपर लहरा रहा था और धरा पर वीर सपूतों को अपने आंचल के नीचे समेटे गर्वित हो रहा था |
गूंज रही थी बस यही धुन ‘ए वतन मेरे वतन आबाद रहे तू |
मैं रहूं या ना रहूं आबाद रहे तू |’
— मंजूषा श्रीवास्तव “मृदुल”

*मंजूषा श्रीवास्तव

शिक्षा : एम. ए (हिन्दी) बी .एड पति : श्री लवलेश कुमार श्रीवास्तव साहित्यिक उपलब्धि : उड़ान (साझा संग्रह), संदल सुगंध (साझा काव्य संग्रह ), गज़ल गंगा (साझा संग्रह ) रेवान्त (त्रैमासिक पत्रिका) नवभारत टाइम्स , स्वतंत्र भारत , नवजीवन इत्यादि समाचार पत्रों में रचनाओं प्रकाशित पता : 12/75 इंदिरा नगर , लखनऊ (यू. पी ) पिन कोड - 226016