ग़ज़ल
है मेरा साथी ग़मों का साया ,
बिछड़ के तुमसे मैं जी न पाया
उदास चेहरा पलक में आँसू,
लरज़-तड़फ दिल है छटपटाया
करे ज़माना ये ज़िक्र सदियों
शिखर पे चढ़ कर मैं जगमगाया
था अज़नबी रहगुज़र में मेरे
जो महके -शरबत मुझे पिलाया
ता-उम्र जिसने कमाई दौलत
सफ़र के आख़िर में बाँट आया
ऐ दिल बनी ऐसी आरज़ू रख
के ख़्वाबे-दिलवर आ मुस्कुराया
वो मेरा “मैत्री”भले हमसाया
बिना मिले भी मैं रह न पाया.
— रेखा मोहन