सामाजिक

उम्र और जिंदगी का फर्क

गोंदिया – भारत अपनी परंपराओं, संस्कृति, संस्कार, अपनापन, मान मर्यादा, अपनत्व इत्यादि अनेक प्रकार की मानवीय आचरण सभ्यता के लिए विश्व प्रसिद्ध है। मेरा निजी विचार है कि भारत में नागरिक अपनों, अपने बड़े बुजुर्गों का जितना सम्मान मानमर्यादा करते हैं, विश्व में कहीं नहीं होगा। हालांकि सभी अच्छाइयों में कुछ अपवाद बुराइयां भी होती है जो नगणयता में गिनी जाती है। मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है, अपनों से रिशता सामाजिक संबंधों का आधार है और रिश्तो में कड़वाहट मनुष्य में मानसिक अशांति पैदा करता है, जिससे जिंदगी का मकसद सिर्फ उम्र काटना तक ही सीमित हो जाता है। भारतीयों में एक खास मानवीय गुण है कि वह किसी भी माहौल में जल्दी घुलमिल जाता है। कुछ अपवादों को छोड़ दें तो भारत की मिट्टी में ही यह गुण समाया है कि अपनत्व झलकता है। भारतीय अपनी जिंदगी अपनों के साथ सुगमता के साथ जीते हैं केवल उम्र काटने के लिए नहीं। बल्कि अपनों के साथ मिल जुलकर रहना भारतीयता की फितरत है।…साथियों बात अगर हम उम्र और जिंदगी में वर्क की करें तो, उम्र केवल एक गणितीय संख्या है, जो प्रतिवर्ष परिवर्तित होनी ही है। लेकिन जिंदगी, जिंदादिली से जीने का नाम है, जिसे हम जीवन के प्रथम दिन से लेकर, मृत्यु तक मजे से जी सकते है, बिना किसी वार्षिक परिवर्तन के।…साथियों कई बार ऐसा होता है कि किसी परेशानी या विपत्ति में ह फंसकर हम निराश हो जाते हैं, यहीं से चालू होती है जिंदगी की नीरसतता और हम डिप्रेशन में चले जाते हैं। हालांकि अपनत्व का मानवीय गुण हमें भारत की मिट्टी से ही गॉड गिफ्ट में मिला है। परंतु हम इसे समझ नहीं पाते और अपनों से दूर होकर सिर्फ उम्र बितानें की बात करते हैं…। साथियों, बात अगर हम वर्तमान समय के आधुनिक पाश्चात्य परिवेश की करें तो भारत में यह पाश्चात्य संस्कृति डायन अपने पैरों को बहुत तेजी के साथ पसार रही है। हमें गॉडगिफ्ट में मिले अपनत्व और अपनेपन तथा अपनों से दूर कर रही है…। साथियों अपनत्व की कमी का एहसास अगर महसूस करना है तो भारत से नौकरी पेशे या अन्य किसी कारण से जो भारतीय विदेशों में रह रहे हैं उनसे पूछिए!!! अपनत्व के बिना कितने दुखी हैं!! साथियों मेरे कुछ दोस्त, रिश्तेदार विदेश में रहते हैं उनका कहना है हमें अपनत्व की कमी महसूस होती है। बिना अपनों के हम यहां तरस गए हैं और मुझे भाग्यशाली मानते हैं कि तुम अपनों के साथ रह रहे हो…। साथियों, बात अगर हम रिश्तो की करें तो रिश्ता वही जिसमें एक दूसरे के प्रति अपनत्व हो, क्योंकि हर कोई चाहता है कि उसके सामने वाला व्यक्ति उसकी हर ख़ुशी हर गम को बिना बताए ही जान ले और यह तभी संभव है जब हमारे दिलों में एक दूसरे के प्रति अपनापन होगा क्योंकि एक दूसरे की खुशी-गम-दुःख जानने के लिए एक दूसरे को अपनाना पड़ता है क्योंकि रिश्ते ही हमारी जिंदगी जीने का आधार हो जाते हैं साथियों…। समाज शास्त्रियों, व्यवहार विशेषज्ञों एवं मनोविज्ञानियों का मानना है कि संतोषजनक अपनत्व व रिश्ता न सिर्फ़ आयु बढ़ाता है, बल्कि मोटापा,डिप्रेशन और दिल के रोगों से भी सुरक्षा देती है। बातों और स्पर्श से ऑक्सीटोसिन नामक हाॅर्मोन स्रावित होता है, जो तन और मन पर कूलिंग प्रभाव डालता है। लेकिन इसके लिए आपको न तो हज़ारों ऑनलाइन दोस्तों की ज़रूरत है और न ही खचाखच भरे किसी कॉन्फ्रेंस रूम में मौजूद लोगों की। बस, आप इन ख़ास दोस्तों के सम्पर्क में रहने की आदत डाल लें, तो आपको अपने जीवन में काफ़ी सुकून मिल सकता है।…साथियों हर आदमी के स्वभाव में भिन्नता होती है। उसकी यह भिन्नता उसे दूसरों से अलग पहचान प्रदान करती है। ऐसे में कभी-कभी कुछ चीजों के नजरिए को लेकर आपस में विरोधाभास की स्थिति बन जाती है। अपने साथी के ऐसे विशिष्ट गुण को पहचानने की कोशिश करें।…साथियों बात अगर हम पिछले साल और अभी के लॉकडाउन की करें तो हालांकि हमारे ऊपर भयंकर आघात हुआ परंतु लॉकडाउन के कई सकारात्मक पक्ष भी हैं। इस वक्त ने अपनों के महत्व को समझाया, अपनों के साथ समय बिताने का मौका दिया, खुद को तलाशने का वक्त मिला, पुराने दोस्तों से वापस से वही दोस्ती करवाई,जो कहीं-न-कहीं गुम हो रही थी। पुराने किस्से याद करवाए।अपनों के साथ जिंदगी जीने का बहुत समय मिला। ऐसे कई मायनों में लॉकडाउन हमारे लिए बेहतरीन साबित भी हुआ है।तो क्यों न इस बीते हुए लॉकडाउन का भरपूर फायदा उठाते हुए हम अपने जीवन को अपने हिसाब से तैयार करें।और अपनों के साथ जिंदगी जिए ना कि उम्र काटे।अतः उपरोक्त पूरे विवरण का अगर हम गहराई से अध्ययन करें और उसका विश्लेषण करेंगे तो हमे इस उम्र और जिंदगी का फर्क महसूस होगा जो अपनों के साथ बीती वह हमें वास्तव में जिंदगी लगेगी और जो अपनों के बिना बीती वह उम्र काटने तक सीमित हो जाती है तथा अभी नई जनरेशन को अपनों के साथ समय बिताना और अपनों को नई जनरेशन के साथ दोस्त बनकर रहना आधुनिक जीवन जीने का मूल मूल मंत्र साबित होगा।

उम्र को अगर हराना है तो।
अपनों के साथ जीना सीखिए।।
क्या खूब रंग दिखाती है जिंदगी।
रिश्तो को थोड़ा महत्व दीजिए।।
लॉकडाउन ने भी अपनों का महत्व समझाया।
अपनों के साथ जीवन जीने का रास्ता दिखाया।।

—  एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानी

*किशन भावनानी

कर विशेषज्ञ एड., गोंदिया