लघुकथा – बेबसी
ढाई बरस का मंकू भूख के कारण बार बार अपनी माँ लाली को झिंझोड़ रहा था , पर पास बैठी लाली को जैसे काठ मार गया हो। अपने दूध मुंहे बच्चे को अचेत देख जड़ हो गई थी वह., पिलाती थी वह दूध,सीने से लगाकर बार बार रखती पर खून पानी ही रहा। कब वह हमेशा के लिए सो गया ,पता ही नही चला ।
लाॅकडाउन में काम की बड़ी तंगी होने से खाने के लाले पड़ गये थे। हरिया घर के अंदर आते ही बोला..देख लाली आज चार ही रोटी मिली। कहीं काम भी नही मिल रहा था,बहुत मुश्किल से होटल वाले के यहां से ये मांग लाया । दो तू खा लेना ,एक मैं और एक मंकू ,तुझे ज्यादा की जरूरत है और अभी तो बस इतना ही है।
हरिया मंकू के हाथ में रोटी देकर कहा ,ले खा ले। मंकू हाथ मे रोटी के छोटे टुकड़े कर अपने दूधमुंहे भाई को खिलाने लगा.,
खा ले मुन्ना..देख अम्मा कितना गुस्सा है तू बहुत रोता है न इसलिए । बच्चे में कोई हरकत न देख हरिया जड़ हो गया।
ये दृश्य देख हरिया मंकू को सीने से लगा दहाड़ उठा ,अब कभी नही रोयेगा तेरा मुन्ना।
— सपना चन्द्रा