गीतिका/ग़ज़ल

लगता है

एक बस तेरा चेहरा ही सच्चा लगे,
बाकी झूठा सारा जमाना लगता है।

तेरी हर अदा के आगे पीछे देख,
मेरा ये दिल दीवाना लगता है।

सूखी पलकों के किनारे हैं गीले,
टूटा कोई सपना सुहाना लगता है।

नीदें सोती हैं जागती है भटकती है,
ख्वाबों में तेरा आना जाना सा लगता है।

मिलता है तू यूं बेरुखी से तेरा मिलना,
भी ना मिलने का बहाना लगता है।

तेरे चेहरे के पीछे की फितरत है कैसी,
हर भाव आजकल अनजाना लगता है।

पत्थरों की कमी नहीं लोगों के हाथों में,
इन पत्थरों से अपना रिश्ता पुराना लगता है।

मंडराता है तू कली कली के सिरहाने,
तेरा हर अंदाज अब कातिलाना लगता है।

तेरा दिया हर दर्द हर जख्म सर आँखों पर,
अब तो दिल को तू गुजरा जमाना लगता है।

तुझसे भरोसा जाने क्यूँ उठता ही नहीं,
तेरे झूठ का हर अंदाज सायराना लगता है।

गाहे बगाहे उठाकर नजरें तू देख मुझे,
तू मेरे दिल का कातिल पुराना लगता है।

— आरती त्रिपाठी

आरती त्रिपाठी

जिला सीधी मध्यप्रदेश