कविता

अटूट बँधन

ये कैसा रिश्ता है
ये कैसा बंधन है,
धागों की डोर में बँधा
ये कैसा संबंध है।
न कोई अनुबंध है
फिर भी अमिट संबंध है,
बहन की राखी में सिमटा
ये अनोखा प्रबंध है।
नोक झोंक, लड़ना झगड़ना
बहन भाई की नाराजगी भी
सीमा पार तक जाकर फिर
उल्टे पाँव लौट आना
राज भला किसने जाना?
बहन साथ है तब तक
भाई खुश होता है,
बहन को विदा करने की चिंता में
परेशान होता, रोता भी है,
बहन के भविष्य को सोचता भी है
राखी के बँधनों में बँधा
अपने कर्तव्य जानता, मानता भी है,
भाई है तो क्या हुआ
पिता सदृश्य कर्तव्य भी निभाता है।
भाई छोटा हो या बड़ा है
बहन की ढाल होता है,
बहन के लिए भाई
सबसे बड़ा उपहार होता है।
बहन भी सब जानती है
भाई के नाज नखरे
बहन ही तो उठाती है,
छोटी हो या बड़ी हो
माँ ,बहन, बेटी सरीखे भाव दिखाती है
ब्याहकर उसे दूसरे घर जाना है,
भाई सदा ही रहे सलामत
तभी तो मायके आना जाना है।
माता पिता के बाद तो बस
मायके के नाम पर
भाई का आशियाना भर है।
भाई खुश रहे,सलामत रहे
बस यही दुआ माँगती है,
भाई की कलाई कभी सूनी न रहे
हर बहन यही तो चाहती है,
धन दौलत कपड़े गहने नहीं
राखी की आड़ में वो हमेशा
भाई भाभी का दुलार चाहती है,
जीवन पर इस रिश्ते का मान बना रहे
यही व्यवहार चाहती है,
राखी बाँधकर भाई की कलाई में
बहन भाई से यही उपहार चाहती है,
भाई की लंबी उम्र की
बहन सदा ईश्वर से वरदान मांगती है।

*सुधीर श्रीवास्तव

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