कविता

राखी का बंधन

श्रावणमास की पूर्णिमा को
होता ये त्योहार ,
भाई बहन के प्रेम का
बढ़ जाता स्नेह अपार।
नहीं किसी बंधन में इतना
जोर कहां होता है,
राखी के कच्चे धागों में
ताकत जितना होता है।
अपनी रक्षा की खातिर जब भी
बहन पुकारती भाई को
भाई दौड़ा आता है तब
बिना किसी देरी के।
धर्म कभी दीवार नहीं था
भाई बहन के रिश्तों में,
बन जाते अनजाने अपने
राखी के संबंधों में।
रानी कर्णवती ने अपनी रक्षाहित
हुमायूं को राखी भेजी थी,
मान रखा था राजा ने
तब राखी की खातिर।
विष्णु प्रिया ने राजा बलि को
रक्षा सूत्र में बाँध लिया,
द्रौपदी की आर्दपुकार सुन
कृष्ण ने चीर था बढ़ा दिया।
प्रेम प्यार में बँधा सूत्र
इतना विश्वास जगाता है,
बहन की राखी बाँध कलाई
हर भाई इतराता है।
अपनी और पराई कोई
बहन नहीं होती है,
राखी के बंधनों में बाँध ले
ऐसी बहनें होती हैं।
बहन की रक्षा की खातिर
जो मौत से भी टकरा जाये,
बहन को करे निहाल सदा
ऐसा ही भाई होता है।

*सुधीर श्रीवास्तव

शिवनगर, इमिलिया गुरूदयाल, बड़गाँव, गोण्डा, उ.प्र.,271002 व्हाट्सएप मो.-8115285921