हे ! मेरे परमेश्वर
(शिक्षक दिवस पर)
वंदन है,नित अभिनंदन है, हे शिक्षक जी तेरा ।
फूल बिछाये पथ में मेरे,सौंपा नया सबेरा ।।
भटक रहा था भ्रम के पथ पर,
राह दिखाई मुझको
गहन तिमिर को परे हटाया,
नमन् करूं मैं तुझको
आशाओं के सावन में है अरमानों का डेरा ।
शीश झुकाऊं हे परमेश्वर,भाग्य मिरा यूं फेरा ।।
मायूसी से मुझे निकाला,
कर दी नव संरचना,
आज शिष्य यह गौरवधारी,
मैं तेरी ही सृजना
मैं तो था अपात्र,अविवेकी,तूने ही तो टेरा ।
भगवन् तेरे कारण ही यह,आई मंगल बेरा।।
तब बन पाया सच्चा इंसां,
तूने दिये सहारे
देकर के विवेक का तोहफ़ा,
दुर्गुण सारे मारे
अब तो मेरा दिल है मानो,जैसे ज्ञान बसेरा।
वंदन है ,नित अभिनंदन है, हे शिक्षक जी तेरा ।।
— प्रो.शरद नारायण खरे