ग़ज़ल
जब तलक ग़म के काफ़िले जाएं
हर कदम साथ हौसले जाएं
मंजिलों पर कदम पहुँचने तक
काविशों के न सिलसिले जाएं
वक्त का भी यही तकाज़ा है
कम किए और फ़ासले जाएं
ख्वाहिशों के उदास चेहरे पर
रंग ख़ुशियों के कुछ मले जाएं
फ़िर किसी ने हमें कहा अपना
हम न फ़िर से कहीं छले जाएं
धर्म का छद्म राग छोड़ें तो
उन तलक ख़ास मस’अले जाएं
सच को सच ही कहेंगे हम बंसल
होठ जब तक नही सिले जाएं
— सतीश बंसल