कविता

प्रेम

प्रेम इतना भी आसान नहीं
जितना सभी समझते हैं
प्रेम में उतारकर मुखौटा
आईना बनना पड़ता है

आज चार बातें हुईं आपस में
एक दो बार मिल लिए
व्हाट्सएप
फेसबुक पर संवाद जारी रहा
कुछ आकर्षण का एहसास बढा
और बस !
मान बैठें आपस में
एक दूसरे से प्रेम करते हैं

ओह,
इतना भी आसान नहीं
प्यार को जीना प्यार में होना

प्रेम जहां एक तरफ आनंद है तो
दूसरी तरफ संघर्ष भी है
जो निस्वार्थ व दूरियों में भी
अपने प्रेमी के लिए एक प्रार्थना है

उसपर आने वाले हर बाधा, संकट
मुझसे होकर गुजरे अरदास है

प्रेम में पानी भी बनना पड़ता है
ताकि देख सकें आरपार एक दूजे के
न हो कोई रंग
जो ढक सके अंतर्मन की छवि को

आज कितने ही लोग
प्रेम को करने लगे हैं बदनाम
पूरी करते हैं अपने देह की जरूरत
फिर किसी बहाने बना लेते हैं दूरी
और कहते हैं सबकुछ प्रेम में हुआ
मेरा क्या दोष !

प्रेम में सोना बनना पड़ता है
फिर तपकर तरह-तरह के आभूषण

तब जाकर प्रेम की सुंदरता को
खूबसूरत रूप, निखार मिलता है

मैं कहना चाहती हूँ
उन नकाबपोश लोगों से
प्रेम को प्रेम ही रहने दो
उसपर
मतलबी, स्वार्थी होने का दाग मत लगाओ

ताकि आगे भी प्रेम
अपने बजूद के साथ बचा रहे जिंदा रहे….

*बबली सिन्हा

गाज़ियाबाद (यूपी) मोबाइल- 9013965625, 9868103295 ईमेल- [email protected]