सामाजिक

क्यूँ पैदा होती है लड़कियां अपमानित होने के लिए

दुनिया कहाँ से कहाँ पहुँच गई पर कुछ लड़कीयों के लिए कुछ नहीं बदला, कुछ भी नहीं बदला। खून खौलता है जब मर्दानगी के पुतलों के हाथों रौंद दी जाती है बेटियाँ।
कल कहीं पढ़ा की कुछ समय पहले उत्तर प्रदेश के देवरिया जिले में जीन्स पहनने पर एक 17 साल की बच्ची को पीटकर मार डाला गया। आरोप है कि बच्ची के दादा ने उससे जीन्स बदलने को कहा लेकिन बच्ची नहीं मानी। नाराज़ दादा ने उसे मारने का हुक्म दिया। दादा है या कोई सरमुखत्यार? और उनके बेटों ने उसे मारकर नदी में फेंक भी दिया। वाह रे दुनिया क्या न्याय किया है अपनी ही बच्ची के साथ। लेकिन बच्ची की लाश नदी में ना गिरकर लोहे के पुल के एक एंगल में फंसकर लटक गई। सुबह राहगीरों ने लाश देखकर पुलिस को खबर दी। जिस मां की आंखों के सामने उसकी बेटी को पीट-पीटकर मार डाला गया उसकी हालत खराब है। शाम को करीब साढ़े सात बजे बच्ची ने नहाकर जीन्स पहना तो उसे देख दादा बिगड़ गए। उन्होंने उसे फ़ौरन कपड़े बदलने का हुक्म दिया। बच्ची ने कहा कि उसे जीन्स पहनना अच्छा लगता है, दादा को यह बर्दाश्त नहीं हुआ और बेटों से कहा कि इसे मार डालो।
लड़की की मां शकुंतला ने कहा कि उन्होंने लाठी-डंडा, जैसे चाहा वैसे मारा और हमारी बेटी मर गई। टेंपो बुलाकर फोन से, बहिनी को हमारी लादा, तो हमने कहा कि हमारी बेटी मर गई? कहने लगे कि थोड़ी चोट लगी है, दवा कराने ले जा रहे हैं। दवा कराने के बहाने हमारी बेटी को पटनवा पुल से फेंक दिया।
और हम बोलते है कि अब सब औरतें बराबरी पर है। समान हक तो छोड़ो बेटियों को इंसान तक नहीं समझा जाता। कत्लखाने के पशु की भाँति निर्ममता से मार दिया जाता है।
अगर इस किस्से में रत्ती भर भी सच्चाई है तो पूरी दुनिया को डूब मरना चाहिए। समाज के ठेकेदारों अगर इस बच्ची के कातिलों को कड़ी से कड़ी सज़ा नहीं दिला पाते तो न्यायालय को ताले लग जानें चाहिए।
इस बच्ची के बाप पर थू है, और माँ को धिक्कार है। अरे अपने बच्चों की ख़ातिर एक माँ भगवान से भी भीड़ जाती है। माँ की आँखों के सामने बेटी को बेरहमी से पीटकर मार डाला और वह देखती रही? अरे छीन लेती लाठियां और रसोई में जाकर छुरी उठा लाती। हिम्मत करके वार कर देती, एक खरोंच भी किसी नामर्द के हाथ पर कर देती तो डर के मारे नपुंसक भाग जाते। इतनी ओछी और नीच हरकत करके मर्द कहते है खुद को। दादा तो बेटियों को लक्ष्मी का रुप समझते है, बाप के लिए बेटी सर्वस्व होती है और ताऊ-चाचा के लिए भतीजि बेटी समान होती है। लाड़ लड़ाते है बच्ची को, हाथ कैसे उठ सकता है मासूम को मारने के लिए। उस गाँव के लोगों ने इस अत्याचार को सह कैसे लिया, ज़िंदा जला देते भेड़ियों को ताकि दूसरी बार ऐसी घिनौनी हरकत करने वाले सौ बार सोचे। आख़िर क्यूँ और कब तक स्त्री ज़ात पर ऐसे मर्द कहलाने वाले छक्के अत्याचार करते रहेंगे? अनपढ़ गंवारों को कहीं से तो ज्ञान मिले जिन्स पहनने में क्या बुराई है? कपड़े पहनने की ज़िद्द थी बेटी की उतारने की तो नहीं की ऐसी शर्मनाक सज़ा दी जाए। धिक्कार है ऐसी सोच पर, थू है ऐसे समाज पर और लानत है ऐसे परिवार पर जो बेटियों को इज़्जत देने की बजाय अपने ही हाथों मार देते है। जहाँ एक तरफ़ कुछ बेटियां देश को सम्मान दिलवा रही है वहाँ दूसरी तरफ़ छोटी सी बात पर बच्ची को मार दिया जाता है, उपर उठने की बजाय इंसान की सोच और मानसिकता गिरती जा रही है। ये विमर्श शायद सदियों तक चलता रहेगा। ऐसी बच्चीयों की माँओं जागो विद्रोह की मशाल जलाओ कब तक बेटियों की बलि चढ़ाते रहेंगे। या सरकार से कहो गर्म परिक्षण को मान्यता दें, कोख में ही दफ़न कर दो ताकि न बेटी जन्म ले पाए न अपमानित होते मर-मरकर जिएं। बेटियों पर रहम करो।
— भावना ठाकर

*भावना ठाकर

बेंगलोर