कविता

नशा मुक्ति अभियान

जीवन का सुख उठाना है
तो खूब मजा कीजिए,
जितना नशा कर सकते हैं
वो सब भरपूर कीजिए।
मरना तो आखिर एक दिन सबको है
फिर बुढ़ापे में जाकर मरें,
इससे तो चलते फिरते
निपट जायें तो ही बहुत अच्छा है।
हमारी सरकार भी तो आखिर,
खुल्लमखुल्ला यही चाहती है।
बेरोजगारी नशे की आड़़ में
शायद कम करना चाहती है।
राजस्व पाने की चाहत इतनी,
नशे का उत्पादन बंद नहीं कराती।
उल्टे नशा मुक्ति अभियान चलाकर
नशा मौत है समझाकर सबको भरमाती रहती।
नशीले उत्पादों की पैकेट पर देखिए,
नशे के खतरे लिखवाती, चेतावनी देती है।
हमारी सरकार गंभीर बहुत है,
नशे करने की छूट देकर
इलाज का भी इंतजाम करती है।
यह कैसी विडंबना है यारों,
सरकार ही सब कुछ करती है।
हमारे जीने की चिंता वो करती,
ये अलग बात है हमारे मरने का
ख्याल भी ज्यादा वही रखती है।
नशीले उत्पादों से काफी धन कमाती है,
उसी राजस्व से हमें सुविधाएं बाँटती है।
बचा कुछ भी पाती नहीं पर
उसकी उदारता तो देखते बनती है।
इसी बहाने करोड़ों को प्रत्यक्ष या परोक्ष,
रोजगार तो उपलब्ध कराती है।
नशा मुक्ति अभियान में भी,
खुले हाथ धन लुटाती।
साथ-साथ कीमती समय भी,
खुशी-खुशी व्यर्थ ही में गँवाती है।
हमारी सरकार बड़ी दयालु है,
हमारी चिंता का बोध कराती है।

*सुधीर श्रीवास्तव

शिवनगर, इमिलिया गुरूदयाल, बड़गाँव, गोण्डा, उ.प्र.,271002 व्हाट्सएप मो.-8115285921