कविता

व्यंग्य-नशा मृत्यु कहाँ

अजी छोड़िए!
आप भी क्या मजाक करते हैं,
नशे से भला लोग कहाँ मरते हैं?
कुछ अच्छा सोचिए
करोड़ों लोगों के रोजगार और
उनके परिवारों का भी ख्याल कीजिये।
चलो मान भी लें कि
नशा मौत बाँटती है,
फिर भला नशे से दूर दूर तक
जिनका नहीं है नाता,
फिर भला उन्हें मौत क्यों आती है?
नशे और मौत के जाल में
काहे उलझते हैं,
स्वच्छंद रहिए, मस्त रहिए
चार दिन की जिंदगी है
जी भरकर ऐश कीजिये,
मरना तो एक दिन सबको है
फिर मन मारकर जीने से तो बचिए।
जीवन का लुत्फ़ उठाइए
मौत का खौफ न मन में लाइए,
आज मरें या कल
इस चिंता से मुक्त होकर जिएं
जो भी आपका मन करे
खाइए, पीजिए, ऐश कीजिये
मौत का इंतजार मत कीजिए
उसे जब आनी है आयेगी
जब आ जाय उसका हाथ थाम लीजिए
बेवजह नशे को बदनाम मत कीजिए।

*सुधीर श्रीवास्तव

शिवनगर, इमिलिया गुरूदयाल, बड़गाँव, गोण्डा, उ.प्र.,271002 व्हाट्सएप मो.-8115285921