कविता

शंखनाद

हर पराजय है एक नई जीत का शंखनाद
हार से घबराकर क्यों करता है जिंदगी बरबाद,
‘उपहार’ में भी ‘हार’ शब्द कमाल का है,
हार को उपहार मानकर हो जा शाद.
‘हार’ शब्द का अर्थ माला भी होता है,
जिससे जीत के बाद कंठ सुशोभित होता है,
हार से सीख लेके आगे बढ़ता चल,
जीत के लिए हार एक प्रेरक पायदान होता है.
एक बार की हार से जीवन समाप्त नहीं होता,
शेर का एक शिकार छूट जाए, तो वह नहीं रोता,
जो हार मानने से करता है इंकार, केवल इंकार,
वही विजेता बनकर चैन-सुकून से है सोता.
रोकर हार का दुःख मनाते रहने से ही,
जीत का उजियारा प्राप्त नहीं होगा.
जीत के उजालों को पाने के लिए,
संघर्षों की आग में खुद को तपाना ही होगा!!
सोचो, बड़ा सोचो, और बड़ा सोचो,
क्योंकि सोच किसी एक की जागीर नहीं है,
सोच के अमृत हेतु बुद्धि-पट को निचोड़ो,
तभी पता चलेगा कि जीत यहीं कहीं है.
हार ही तो है जीत का पहला सोपान,
इसी पर आरुढ़ होने से मिलेगा जीत का सामान,
जीतने के लिए हार भी जरूरी है,
वरना कर न पाएंगे जीत का समीचीन सम्मान.
जीत का अमृत-रसपान करना हो ‘गर तो,
हार के गरल को स्वीकार करना होगा,
हर पराजय को मानकर जीत का शंखनाद,
इस शंख को जोर से फूंककर बजाना होगा.
आइए इस दिवाली पराजय से जीत का शंखनाद करें,
मुस्कुराकर आत्मिक आनंद के कोष को आबाद करें,
हार (मालाएं) से तो प्रभु के कंठ सुशोभित होंगे ही,
हम भी हार (पराजय) को उपहार मान एक नया आनंद ईजाद करें.

*लीला तिवानी

लेखक/रचनाकार: लीला तिवानी। शिक्षा हिंदी में एम.ए., एम.एड.। कई वर्षों से हिंदी अध्यापन के पश्चात रिटायर्ड। दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत। हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। लीला तिवानी 57, बैंक अपार्टमेंट्स, प्लॉट नं. 22, सैक्टर- 4 द्वारका, नई दिल्ली पिन कोड- 110078 मोबाइल- +91 98681 25244