कविता

अच्छा लगता है

अच्छा लगता है तुम्हारा हक जताना
हर बात पर बहुत चाहते हो यह बताना
ऑफिस जाते वक्त मुझे मुड़ मुड़ कर देखना
किवाड़ खोलने में देरी हो तो झल्लाना
अच्छा लगता है मुझे.
बहुत फिक्र तुम करते रहते हो हमारी
ध्यान रखो अपना हो न जाए कोई बीमारी
तुमको कुछ हो गया तो क्या करूंगा ?
हर बार दवाओं का बिल दिखाना आदत है तुम्हारी
अच्छा लगता है मुझे.
 कुछ भी करने से कभी नहीं रोकते
 मैं क्या हूं क्या करूं कभी नहीं टोकते
हर औरतों की तारीफ करते नहीं थकते
मुझे कोई सराहे वह तुमको नहीं भाते
पर अच्छा लगता है मुझे.
हमारी हर गलती पर एक ही बात कहना
अपने  सास ससुर की  हमेशा कदर करना
हमारे घर वालों की कोई परवाह नहीं तुम्हें
यह सुन मायके का हर बार पता बताना
अच्छा लगता है मुझे.
मत करो खोखली फिकर मत करो मेरी चिंता
अब तो मैं उड़ना चाहूँ उन्मुक्त बस एक परिंदा
मुझे अब एक ऐसा आसमान चाहिए
मेरी खुद की एक पहचान चाहिए.
— सविता सिंह मीरा

सविता सिंह 'मीरा'

जन्म तिथि -23 सितंबर शिक्षा- स्नातकोत्तर साहित्यिक गतिविधियां - विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में रचनाएं प्रकाशित व्यवसाय - निजी संस्थान में कार्यरत झारखंड जमशेदपुर संपर्क संख्या - 9430776517 ई - मेल - meerajsr2309@gmail.com