लघुकथा

गड्डे ज्यादा अच्छे हैं

शहर की सड़क को गांव से जोड़ने वाला रास्ता आज भी कच्चा है, हाँ ! शहर होने के बाद अक्सर गांव, गलियों तालाब को अनाथ ही छोड़ दिया जाता है।

नंदलाल “ये रास्ता सरकारों के चश्मों से नहीं दिखता कभी भी शायद! उनको ज़माने से द्रष्टि भ्रम की बिमारी हो!”
भानुप्रताप ” खैर ! छोड़ो सरकार को कोसना?”

नंदलाल और भानुप्रताप अच्छे दोस्त हैं बचपन से बेशक आज उम्र के 50 वें बरस में हों, हां! पारिवारिक परिस्थितियों ने झुर्रियां पहले ही ला पटकी चेहरों पर लेकिन बातें नि:संकोच करते रहते हैं।

भानुप्रताप का एक रिश्तेदार पैसे वाला हो गया था अखिलेश हां ! अखिलेश , तो अपना रौब दिखाने के लिए फोन पर बुलावा भेजा “भूल गए आप कभी मिल तो लिया करो, छोड़ों गड्ढों वाला रास्ता शहर में मकान ले लो , शहर में सड़कें हैं , फ्लाईओवर हैं , सायं-सांय चलती रहती हैं गाडियां ! कब तक यहां अपनी ऐड़ियों को रगड़ते रहोगे? हम आ रहें हैं मिलने अपनी नई कार से शहर वाली सड़क पर मिलना ठीक है न!”

अब भानुप्रताप ने बताया नंदलाल को , अब दोनों साथ चलने के लिए तैयार , भई! आखिरकार मित्रता ही ऐसी है। अपने अनुभवों को बांटते चले, चलते रहे धीरे-धीरे कच्चे और गड्ढों से भरे रास्ते पर । बातें, वार्तालाप ,संवेदनशीलता का आदान-प्रदान उनको फिर से जीवंत कर देता है अपनी परिस्थितियों से जूझने के लिए और ये वक्त गड्ढों ने दे ही दिया था उन दोनों को।

नंदलाल और भानुप्रताप शहर वाली सड़क पर पहुंचे 2 घंटे बाद तो देखा “ज्यादा तेज गति से गाड़ी चलाने की वजह से अखिलेश ने डिवाइडर पर दे मारी,कराह रहे थे गाड़ी में ही भगवान का शुक्र है बच गये।”उनका मरहम पट्टी करवाया और उनको और वापस उनके घर छोड़कर ,अपने कच्छे रास्तों पर आये दोनों दोस्त।

दोनों की अंतरात्मा से एक ही बात निकली “गड्डे ज्यादा अच्छे हैं”

— प्रवीण माटी

प्रवीण माटी

नाम -प्रवीण माटी गाँव- नौरंगाबाद डाकघर-बामला,भिवानी 127021 हरियाणा मकान नं-100 9873845733