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खेल, खेल भावना से खेले !

खेल, खेल भावना से खेले !
हमें हमारे साथ घटित घटना की याद आ रही हैं। हम अपने बच्चों के साथ बैडमिंटन प्रशिक्षण के लिए जाते थे। बड़े घर छोटा लड़का वहां खेलने आता था। महंगी कार, महंगी रैकेट, बड़े थाट बाट से। वह चाहता, सब कुछ उस की मर्जी के हो। सर कुछ कहते, वह न मानता। हारने पर जीतने वाले से झगड़ा करना, उसकी आदत थी। धीरे धीरे सब उसके इस व्यवहार से तंग आ गए। हम सब ने उसके साथ हमारे बच्चों का खेलना रोक दिया।”होगा बड़े बाप का बेटा। हमें क्या?” हमारा क्रोध, आक्रोश सहज था। सर के साथ खेलते खेलते वह परेशान हो गया। बच्चों ने उसके साथ बोलना भी छोड़ दिया। अकेलापन उसे खलने लगा। अब उसे अपनी भूल महसूस हुई। उसके पापा ने सब के साथ सुलह कराई। उसने सब से क्षमा भी मांगी। अपने आप में सुधार कर, वह सब के साथ घुलमिल गया। खेल से उसे आनंद अनुभूति का अहसास हुआ। सब का धन्यवाद करते वह खेल खेलभावना के साथ खेलना सीखने लगा।
जीवन को भी हमें उसी सुंदर भावना के साथ जीना हैं। हिलमिलकर रहना हैं। प्रकृति, धरा-गगन, पर्यावरण को स्वच्छ निर्मल रखना हैं। जिओ और जीने दो, हमारी शुभभावना हो। जगत कल्याण की मंगल भावना हो।
खेल खेल में हम बहुत कुछ सीखते हैं। हार जीत का सामना करना, जीतनेवाले का दिल से सम्मान करना, जीत के लिए सतत प्रयास, निरंतर अभ्यास करना। हार से हतोत्साहित न होकर दुबारा जीत के लिए कठिन परिश्रम करना। खेलभावना से खेल खेलना। सकारात्मक सोच हमारी ऊर्जा बढाती हैं। हमारा कौशल तराशती हैं। प्रतियोगिता हमेशा पारदर्शी हो। निरंतर विकास की राह दर्शाती हो। प्रतियोगी का हमारे मन में उचित सम्मान हो। उनसे नया सीखने का हुनर मन में हो। हर खिलाड़ी अपने आप में विशेष होता हैं। प्रवीणता से हमें लाभ ही मिलेगा। नजर चौकस हो। नजरिया स्वच्छ। सहयोग, सहकार की भावना हो।
खेल खेलभावना से खेले। जीवन का आनंद ले। खेल, खेल भावना से खेले !

*चंचल जैन

मुलुंड,मुंबई ४०००७८

3 thoughts on “खेल, खेल भावना से खेले !

  • अशर्फी लाल मिश्र

    ‘खेल भावना से खेले खेल’ एक उत्तम अभिप्राय।

  • चंचल जैन

    आदरणीय लीला दीदी, सादर प्रणाम। हमारे विचार को विस्तारित करती आपकी प्रतिक्रिया के लिए बहुत बहुत धन्यवाद। आपका प्रोत्साहन, प्रेरणा हमारी कलम का संबल हैं। खेल भावना से जीवन जीने से, जीवन बगियां गुलजार होगी। निर्मल आनंद अनुभूति के लिए खेल, खेलभावना से खेले। आजकल हमें टाँगखिंचाई में ज्यादा आनंद आता हैं। मीनमेख निकालना, एक दूसरे को नीचा दिखाना, हमें रास आता हैं। दिखावा, आडंबर हमारी शान, हमारी पहचान बन रही हैं। जीवन की सरलता, भावों की सहजता हम खोते जा रहे हैं। चिंता, चिंतन जरूरी हैं। सादर धन्यवाद।

  • *लीला तिवानी

    बहुत खूब लिखा चंचल जी, खेल को खेलभावना से ही खेलना चाहिए. किसी की हार, किसी की जीत तो खेल में होनी ही है, फिर हारने पर जीतने वाले से झगड़ा करना उचित नहीं है. जीत की तरह हार को भी स्वीकार करना आना चाहिए. हार तो उपहार है, इस पर मनन करने से हमें सीखने के गुर आ जाते हैं. आपने बिलकुल दुरुस्त फरमाया है. ”खेल खेल में हम बहुत कुछ सीखते हैं। हार जीत का सामना करना, जीतनेवाले का दिल से सम्मान करना, जीत के लिए सतत प्रयास, निरंतर अभ्यास करना। हार से हतोत्साहित न होकर दुबारा जीत के लिए कठिन परिश्रम करना आदि. बहुत सुंदर विषय पर बहुत सुंदर प्रतिक्रिया करने के लिए बधाई.

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