गीत/नवगीत

गीत

सासू के घर जाकर तेरा प्यार ना भूला माँ।
बापू की गोदी का वो दीदार ना भूला माँ।
बचपन की इक-इक याद अब भी बहुत तड़पाती,
बीते हुये लम्हों की इक रूत जाने क्या गाती।
भाइयों और भाभियों का सत्कार ना भूला माँ,
ससू के घर जाकर तेरा प्यार ना भूला माँ।
मुँह से इक बात कहती पूरी सौ-सौ बारी करती,
मेरी ठंडी साँसों में तू साँस अपने थी भरती।
तेरी दी हुई शिक्षा का इकरार ना भूला माँ।
सासू के घर जाकर तेरा प्यार ना भूला माँ।
गाँव की गलियों की इक-इक स्मृति है आवै,
पैर जवानी वाला फिर दिल में आग लगावे ।
आँगन में उगा है जो कचनार ना भूला माँ,
सासू के घर जाकर तेरा प्यार ना भूला माँ।
शकुन-उमंगों से तूने विवाह मेरा किया था,
डोली जब बैठी थी तू घूँट सब्र का पिया था।
तेरी मीठी लोरी का संसार ना भूला माँ,
सासू के घर जाकर तेरा प्यार ना भूला माँ।
अपनी तू मरजी का इक ‘बालम’ सुन्दर ढूँढ़ा,
माँग के आँगन में खुशियों का मन्दिर ढूँढ़ा।
दुनिया में माँ जैसा किरदार ना भूला माँ,
सासू के घर जाकर तेरा प्यार ना भूला माँ।
— बलविंदर बालम

बलविन्दर ‘बालम’

ओंकार नगर, गुरदासपुर (पंजाब) मो. 98156 25409