कविता

आत्म खोज

आत्मा परमात्मा का  अंश है
जीव के कण-कण में ही  वह व्याप्त है
शुद्ध है,निर्मल है और निर्लिप्त है
देखने को वह कभी दिखता नहीं
ढूंढते  रहते ऋषिगण-बुद्ध जन
पर ना  देखा है किसी ने आजतक
वह किसी  को भी कभी दिखता नहीं
होता है आभास बस उस प्राणी को
जिस ने खोजा  और पाया स्वयं में।
आत्मा मरती नहीं,जलती नहीं
ना ही पानी उसको गीला कर सके
हर्ष-शोकादि से वह तो दूर है।
प्राण ही इस जीव का आधार है
मर के जीवन पाती है फिर आत्मा
लक्ष्य जीवन का स्वयं को जानना
भोग कर संसार में अपने करम।
शुद्ध हृदय से जो कोई जान ले
आत्मसाक्षातकार कर लेता है वह
आत्मा परमात्मा में लीन  हो
मस्त हो कर भोगता ऐश्वर्या को
फिर कभी वह  लिप्त होता ही नहीं
साधना है आत्मा को जानना
ज्ञान से ही मिलते  हैं परमात्मा
वश में हो जाता है मन उस प्राणी का
करता- भाव छूट  जाता है तभी
रंग परमात्मा  के नाटक जान कर
जीता रहता है सदा अहो- भाव में
लोभ-क्रोध -कामना होती नहीं
होता है वह दूर ईर्ष्या-द्वेष से
साक्षी भाव से सदा वह देखता
आत्मा-परमात्मा के रूप का
भान कर जीवन को जीता है सदा

— डा. केवलकृष्ण ‘पाठक’

डॉ. केवल कृष्ण पाठक

जन्म तिथि 12 जुलाई 1935 मातृभाषा - पंजाबी सम्पादक रवीन्द्र ज्योति मासिक 343/19, आनन्द निवास, गीता कालोनी, जीन्द (हरियाणा) 126102 मो. 09416389481