लेख

भारत की पहचान कभी विश्व गुरु के रूप में थी

भारत का नवाचार, शिक्षण, नवोन्मेष, बौद्धिक नेतृत्व फिर एक बार विश्व गुरु बनने का मार्ग प्रशस्त करेगा

135 करोड़ जनसंख्या पारिस्थितिकी की अप्रयुक्त क्षमता का इस्तेमाल, कौशलता विकास और अच्छी शिक्षा को सुदूर क्षेत्रों तक ले जाकर कर सकते हैं

भारत हजारों वर्षों से पारंपरिक, शिक्षण, संस्कृति, परंपराओं, प्रथाओं, वेदों कतेबों, साहित्यिक खजाने का अभूतपूर्व भंडार रहा है। जिसके बल पर भारत माता को विश्व गुरु का दर्जा प्राप्त था, परंतु अंग्रेजों की बुरी नज़र लगी और भारत जैसे सोने की चिड़िया के अणखुट खजाने और प्राकृतिक सौंदर्यता से छेड़छाड़ कर अंग्रेजों ने न सिर्फ भारतीय क्षमता, सौंदर्यता और खजाने को अभूतपूर्व नुकसान पहुंचाया बल्कि इसके दो टुकड़े भी कर दिए। परंतु भारत के भी जनसंख्या पारिस्थितिकी ने अपने बौद्धिक नेतृत्व, नवाचार, नवोन्मेष शिक्षा के बल पर भारत को फ़िर एक नई रफ़्तार के साथ जान फूंक दी है, जिससे भारत तेज़ी से आगे बढ़ते हुए अपने खोए हुए विश्व गुरु के ओहदे को शीघ्र ही प्राप्त करने में कामयाब होगा!! साथियों बात अगर हम शिक्षा की करें तो राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 एक ऐसा विधान एक ऐसा दिव्य दस्तावेज़ है जिसको पूरे रणनीतिक रोडमैप से तैयार किया गया है। जिसका प्रभाव हमें आगे के वर्षों में ज़रूर दिखेगा। इसमें पूर्व की कमियों और भविष्य की ज़रूरतों को ध्यान में रखकर हर एक स्थिति पर विचार कर उसे समाहित किया गया है। शिक्षाविदों बुद्धिजीवियों शिक्षा क्षेत्रसे जुड़े महानुभावों तथा निजी व सरकारी शिक्षण संस्थाओं को एस एनईपी – 2020 पर विशेष ध्यान देकर इसे लागू कराने में शासन को पूरी मदद करने के लिए तत्पर रहना होगा। यह हमारी आत्मनिर्भर भारत की नीव के स्तंभों में से एक है!! साथियों बात अगर हम नवाचारों की करें तो हम आज के युवा नवाचारों में बहुत आगे हैं। सफ़लस्टार्टअप की शुरुआत कर रहे हैं। यूनिकॉर्न का निर्माण कर रहे हैं। आर्थिक विकास में योगदान दे रहे हैं। नई-नई तकनीकों को इस्तेमाल कर हमारे विश्व गुरु बनने का मार्ग प्रशस्त कर रहे हैं!! साथियों बात अगर हम नवोन्मेष की करें तो आज भारत इस दिशा में काफी आगे बढ़ चुका है। नई नई प्रौद्योगिकियों का आविष्कार कर अति तीव्र गति के साथ भारत को वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्धा के लिए तैयार कर रहा है और माननीय पीएम के मंत्र लोकल फॉर वोकल पर सफलतापूर्वक आगे बढ़ रहा है!! साथियों बात अगर हम बौद्धिक नेतृत्व की करें तो हम भारत माता की गोद में उसकी मिट्टी में पैदा हुए हैं!! और पले बढ़े हैं!! हमारी बौद्धिक नेतृत्व क्षमता गॉड गिफ्टेड है और जगजाहिर है। विश्व प्रसिद्ध है!! हम अगर शिक्षण, नवाचार, नवोन्मेष पर तेजी से आगे बढ़ रहे हैं, यह हमारी बौद्धिक कौशल का नेतृत्व, सफलताओं की सभी मंजिलें पार करने की जांबाज़ी और ज़ज़्बे के साथ जीने का तरीका तथा हमारे वैश्विक लीडर बनने के संकल्प का नतीजा है!!! साथियों बात अगर हम दिनांक 18 दिसंबर 2021 को माननीय उपराष्ट्रपति द्वारा एक कार्यक्रम में संबोधन की करें तो पीआईबी के अनुसार, उन्होंने भी कहा कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति विभिन्न मुद्दों को संबोधित करने की मांग करती है और भारत के एक बार फिर विश्व गुरु बनने का मार्ग प्रशस्त करती है। उन्होंने आगे कहा कि शिक्षा के गुणवत्ता संकेतकों में भारी सुधार करने की हमारी खोज में एनईपी-2020 एक महत्वपूर्ण उपलब्धि है। उन्होंने भारत की समग्र शिक्षा की गौरवशाली परंपरा को याद किया। उन्होंने उस परंपरा को फिर से जीवित करने और शैक्षणिक परिदृश्य को बदलने का आह्वाहन करने के साथ ऋषिहुड जैसे नए विश्वविद्यालयों से इस संबंध में नेतृत्व करने को कहा। इस बात का उल्लेख करते हुए कि शिक्षा राष्ट्र के परिवर्तन में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है, उन्होंने शिक्षा को एक मिशन के रूप में स्वीकार करने का आह्वाहन किया। उन्होंने आज शिक्षा प्रणाली के भारतीयकरण का आह्वाहन किया, जो भारत के प्राचीन बुद्धिमत्ता,ज्ञान परंपराओं और विरासत की महान संपदा पर आधारित है। यह सुझाव देते हुए कि औपनिवेशिक शिक्षा प्रणाली ने लोगों में एक हीन भावना और भेद उत्पन्न किया है, उन्होंने शिक्षा प्रणाली में मूल्य – आधारित परिवर्तन का आह्वाहन किया जिसकी परिकल्पना राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी)- 2020 में की गई है। उन्होंने भारत के नवाचार, शिक्षण और बौद्धिक नेतृत्व के वैश्विक केंद्र के रूप में उभरने की जरूरत पर भी जोर दिया। शिक्षा के मोर्चे पर चौतरफा सुधार की जरूरत पर जोर देते हुए, उन्होंने कहा कि अनुसंधान की गुणवत्ता, सभी स्तरों पर शिक्षण, अंतरराष्ट्रीय एजेंसियों की रैंकिंग, स्नातकों की रोजगारक्षमता और शिक्षा प्रणाली के कई अन्य पहलुओं को बेहतर बनाने की जरूरत है। एनईपी को एक दिव्य दस्तावेज बताते हुए, जो भारत में शिक्षा के परिदृश्य को बदल सकता है, उन्होंने कहा कि यह शिक्षा को एक समग्र, मूल्य – आधारित और शिक्षण के सुखद अनुभव बनने के लिए प्रेरित कर सकता है। उन्होंने आगे कहा, अंतर्विषयक शिक्षा, अनुसंधान व ज्ञान उत्पादन, संस्थानों को स्वायत्तता, बहु-भाषी शिक्षा और ऐसे कई महत्वपूर्ण नीतिगत उपायों पर जोर देने के साथ, हम शिक्षा प्रदान करने के तरीके में एक बड़े बदलाव की ओर बढ़ रहे हैं। जब हमारे युवानवाचार में अव्वल हैं, सफल स्टार्ट-अप की शुरुआत कर रहे हैं, यूनिकॉर्न का निर्माण कर रहे हैं और आर्थिक विकास में योगदान दे रहे हैं, तब भारत में सार्वजनिक सेवाओं, वित्तीय समावेशन और दूरसंचार बुनियादी ढांचे के वितरण में आईटी से संबंधित क्रांति के साथ-साथ शिक्षा में तकनीक को तेजी से अपनाने का समय आ गया है। जब हम अच्छी शिक्षा को सुदूर क्षेत्र तक ले जाते हैं, तो छात्रों की अप्रयुक्त क्षमता का इस्तेमाल अधिक अच्छाई के लिए किया जा सकता है। जैसा कि हम जानते हैं, कभी भारत की पहचान विश्व गुरु के रूप में थी। हमारे पास नालंदा, तक्षशिला और पुष्पगिरी जैसी महान संस्थानें थीं, जहां विश्व के सभी हिस्से से छात्र सीखने के लिए आते थे। हमें उस बौद्धिक नेतृत्व को फिर से प्राप्त करना चाहिए और सीखने व नवाचार के वैश्विक केंद्र के रूप में उभरना चाहिए। अतः अगर हम उपरोक्त पूरे विवरण का अध्ययन कर उसका विश्लेषण करें तो हम पाएंगे कि भारत की पहचान कभी विश्व गुरु के रूप में थी तथा भारत के नवाचार, शिक्षण, नवोन्मेष, बौद्धिक नेतृत्व फिर एक बार विश्व गुरु बनने का मार्ग प्रशस्त करेंगे एवं 135 करोड़ जनसंख्या पारिस्थिति की की अप्रयुक्त क्षमता का इस्तेमाल कौशलता विकास और अच्छी शिक्षा को सुदूर क्षेत्र तक ले जाकर हम कर सकते हैं।

-संकलनकर्ता लेखक- कर विशेषज्ञ एडवोकेट किशन सनमुखदास भावनानी गोंदिया महाराष्ट्र

*किशन भावनानी

कर विशेषज्ञ एड., गोंदिया