कविता

कोई किसी का नहीं यहां

कोई किसी का नहीं यहां, सब किरदार निभाने आए हैं

देख कोई बुझा-बुझा ,कोई रहता है जलता
इन्ही जलते-बुझते रिश्तों में कहीं दूर है
एक ख्वाब पलता
देखा रहा हूँ नई कोंपलें आगे हाथ बढाये हैं

कोई किसी का नहीं यहाँ ,सब किरदार निभाने आये हैं

कितने बैठे सुनने वाले ,कितनों ने बजाई ताली
क्यों धन वैभव की बात करूं मैं ?जब जाना सब को है खाली
जीवन मंच पर खड़े हो कर सब ने गीत गाए हैं

कोई किसी का नहीं यहां सब किरदार निभाने आए हैं

नाटक चल रहा धरा पर
कोई जल रहा दिया है बनकर ,कोई बना है बाती
नाम राम संग छोड़ कर जाते ,संग कोई ना जलेगा साथी
सच्चाई बस राख ही होती ,बाकी सब झूठे साए हैं

कोई किसी का नहीं यहां सब किरदार निभाने आए हैं

देखो घूंघट ओढ़े बैठी सजनी ,साजन के हाथ में प्याला है
चारों तरफ है डगमग पग-पग ,बीच में रखी मधुशाला है
देखकर ऐसे दृश्य अनोखे सजनी भी शर्माएं है

कोई किसी का नहीं यहां सब किरदार निभाने आए हैं

सूरज आ जाता है रोज सुबह, रात फलक पर चांद छा जाता है
सुबह उठाती हर तिनका-तिनका धरा का ,दिन विरह में मोर भी गाता है
सुनकर सब की ह्रदय वेदना ,ये घटा घनघोर छा जाए है

कोई किसी का नहीं यहां सब किरदार निभाने आए हैं

लोग धरा पर बँटें पड़े हैं ,अलग सबकी पूजा की थाली है
कोई गा रहा भजन कीर्तन अनोखे ,किसी की सबकुछ कव्वाली है
माटी के हे माटी हो जाना ,फिर भी इंसान इतराए हैं

कोई किसी का नहीं यहां सब किरदार निभाने आए हैं

कोई पूजा अष्ट योग से ,कोई हाथ जोड़ मुस्काता है
अमीर का घर अब छोडे कैसे ,ये भगवान भी घबराता है
हाथ पकड़ बस साथ में ले लो वहीं पर आता खुदाय है

कोई किसी का नहीं यहां सब किरदार निभाने आए हैं

कैसा जग परिवर्तन है ,बच्चों से छीन रहा बचपन है
भोग-विलास में जीवन बीते, देख कर झकझोर रहा अंतर्मन है
देख गरीब की गोदी में मासूम बैठा है इठलाये है

कोई किसी का नहीं यहां सब किरदार निभाने आए हैं

राह को अपने साफ करो तुम,गिरे हुए काँटें सारे चुनो तुम
प्यार ही बाँटों प्यार जिंदगी,जीवन धागा-धागा बुनो तुम
राहों में मदमस्त चलो चाहे कितने ही काँटें फैलायें हैं

कोई किसी नहीं यहाँ सब किरदार निभाने आये हैं

रहते बड़े मकानों में मगर होता है छोटा दिल ,
दर पर तेरे भगवान खड़ा है या गरीब से जा कर मिल
तेरा भवसागर पार हो जाएगा ,मिल जाएगी मंजिल खाली कटोरा लेकर वह देख यही गुनगुनाए है

कोई किसी का नहीं यहां सब किरदार निभाने आए हैं

कहां सीरिया कहा इराक ,इंसानियत हुई है शर्मसार
बच्चे बूढ़े सब का हुआ कत्लेआम, बस हैवानियत का हुआ प्रचार
देख रही है पूरी दुनिया ,यह घाव बहुत गहरायें हैं

कोई किसी का नहीं यहां सब किरदार निभाने आए हैं

गुलशन की वादी में कभी श्वेत हिमखंड भी गाते थे
चीड़ देवदार के पेड़ घने बाग में तितली पंछी साथ सुनाते थे
अब देखकर हाल बुरा फूल क्या पत्ता-पत्ता मुरझाये है

कोई किसी का नहीं यहां सब किरदार निभाने आए हैं

तेरा मेरा क्या करता मानव सब झूठ फरेब है पाखंड है
मुट्ठी भर ही हो जाना है सबको फिर काहे का ये घमंड है
सबका दिखेगा रूप स्वार्थी ये बादल ऐसे घिर के आएं हैं

कोई किसी का नहीं यहां सब किरदार निभाने आए हैं

जाकर देखो मन मंदिर में ,सब की कितनी गहराई है
जीवन रूप है धोखा हमारा ,बस मौत ही सब की सच्चाई है
मैं सोचूं कवि अलबेला देख मैंने कितने प्रश्न उठाए हैं

कोई किसी का नहीं यहां सब किरदार निभाने आए हैं

शब्द-शब्द भंडार भरा,साहित्य किसी के द्वार ना हो खड़ा
मैं हूँ सेवक माँ शारदे,तेरे चरणों में बस रहूँ पड़ा
चाटुकारिता कैसे हो ,मेरी कलम देख गुर्राये है

कोई किसी का नहीं यहाँ सब किरदार निभाने आये हैं

प्रवीण माटी

प्रवीण माटी

नाम -प्रवीण माटी गाँव- नौरंगाबाद डाकघर-बामला,भिवानी 127021 हरियाणा मकान नं-100 9873845733