कविता

तपस्या

पार्वती सी हो तपस्या
जीवन तपकुण्ड बन जाएगा
परिश्रम की अग्नि में दहक कर
नर का रुप निखर जाएगा
अंगारों में तप कर लौह
औजार का रुप लेता है
कठिन परिस्थितियाँ पार कर
मानव जीवन युद्ध जीत जाता है
स्वर्ण अग्नि में तप कर
आकर्षण बन जाता है
हो तपस्या में लीन
वैरागी मोक्ष पाता है
है जीवन एक तपस्या
सुख दुःख की धुरी में रहता है
अद्धभुत साहस के फलस्वरूप
मरुस्थल में भी फूल खिलता है।
—  श्वेता दूहन देशवाल

श्वेता दूहन देशवाल

मुरादाबाद उत्तर प्रदेश 8909560121