गीत/नवगीत

बिक मत जइहों हिंदू भइया

लोग हंसेंगे फिर से बाबू,
तुम सब की नादानी पर,
बिक मत जइहों हिंदू भइया
अब की बिजली-पानी पर ।

दिल्ली में भी बिजली-पानी,
पर नादानी कर बैठे,
हुए एकजुट ‘वो’, हम खुद को
पानी-पानी कर बैठे
साथ मिला सत्ता का उनको
वो मनमानी कर बैठे
गंगा-जमुनी के चक्कर में
हम कुर्बानी कर बैठे।

खून नहीं खौला क्या अब भी
दंगों की शैतानी पर
बिक मत जइहो यूपी में भी
अबकी बिजली पानी पर।

याद करो बंगाल जहां हम
खुद बंटकर के हारे थे
वो सौ प्रतिशत दीदी सॅंग थे
हम सब में बंटवारे थे
जिता गए सब बांग्लादेशी
अल्लाहू के नारे से
जीत गई दीदी तो चुन-चुन
हम सब को संहारे थे

कोई सेकुलर मुंह ना खोला
इन सबकी शैतानी पर
बिक मत जइहो यूपी में भी
अबकी बिजली-पानी पर।

सुन लो जाटों,वही मुजफ्फरनगर
जहां हम रोए थे,
अपने कितने घर-आंगन
भाई-बेटों को खोए थे
कैराना को भूल गए क्या
जहां बेचकर भागे थे
किसने-किसने साथ दिया था
किस-किस ने बिष बोए थे

क्या विश्वास करोगे ताऊ,
ऐसे अफजल-बानी पर
बिक मत जइहो अबकी दादा
अबकी बिजली-पानी पर।

भला अयोध्या में मंदिर
इनके रहते बन पाता क्या?
काशी विश्वनाथ का कारीडोर
कभी मुसकाता क्या?
मथुरा में भगवान कृष्ण पर
कोई कसम उठाता क्या?
पांच साल में इकसठ मेडिकल
कॉलेज ये बनवाता क्या?

थूकेगा इतिहास एक दिन
ऐसी सुप्त जवानी पर।
बिक मत जइहो यूपी में भी
अबकी बिजली-पानी पर।

जागे नहीं अभी तो, पाकिस्तान
बहुत मुसकाएगा
खालिस्तान हंसेगा,आजम खान
पुनः गरियाएगा
बांग्लादेशी डांस करेंगे,
बाबर मौज मनाएगा,
सच्चा हिन्दुस्तानी, हिंदुस्तान
बहुत पछताएगा।

भारत माता फिर रोएंगी
हम जैसे अज्ञानी पर,
बिक मत जइहो यूपी में भी
अबकी बिजली-पानी पर।

— सुरेश मिश्र

सुरेश मिश्र

हास्य कवि मो. 09869141831, 09619872154