धर्म-संस्कृति-अध्यात्म

आस्था ही ईश्वरीय शक्ति है

ईश्वर क्या है? ईश्वर एक विश्वास,एक आस्था है। आस्था ही सही मायने में ईश्वर का स्वरूप है।ये हमारी आस्था ही है जो एक पत्थर को पूज्य बना देती है।एक साधारण पत्थर जिस किसी पर फेंक दिया जाए उसका  नुकसान हो जाता है।उसी साधारण पत्थर को हमारी आस्था इतना महान बना देती है कि उससे हम
अपना और जनकल्याण की उम्मीद रखते हैं। उससे हम अपनी हर संताप दूर करने की विनती करते हैं।
                            आस्था का ही दूसरा रूप शक्ति है।यह शक्ति ही है जो सारे संसार का संचालन करती है।इस शक्ति को हम चाहे जो नाम दे ले-उसे ईश्वर कहे या अल्लाह कहे। शक्ति ही सभी का मूल आधार है।यह शक्ति ही है जो सभी को एक दूसरे से बांधती है। पृथ्वी में वो शक्ति है जो हमें अपनी ओर खिंचती है
यही कारण है कि हम पृथ्वी से जुड़े हुए हैं।अगर पृथ्वी में शक्ति नहीं होती तो हमारा अस्तित्व ही नहीं होता। संसार में न जाने कितने धर्म और समुदाय है,मगर सभी का मूल आधार शक्ति और आस्था ही है। हिन्दू को अपने ईश्वर में आस्था है तो उसे उससे शक्ति मिलती है, मुस्लिम को अल्लाह में आस्था है इसलिए उससे उन्हें शक्ति प्राप्त होती है।उसी प्रकार जितने भी धर्म है उन सभी को अपने अपने धर्म में आस्था है इसलिए उससे उन्हें शक्ति की अनुभूति होती है।
                  लेकिन इन सभी बातों से परे एक बात तो सत्य है
इस संसार में एक ऐसी भी शक्ति है जो इस संसार का संचालन करती है उसे हम चाहे किसी भी नाम से पुकारे ।उस अदृश्य और अद्भुत शक्ति के बिना इस संसार कि हम कल्पना ही नहीं कर सकते।उस शक्ति के वगैर न तो हम सांस ले सकते और ना ही हम मुक्त हो सकते हैं।वह अदृश्य सत्ता ही हमारी जिंदगी का सूत्रधार है जिसके हाथों में ही हमारी बागडोर है।यह जीवन उसी से मिलती है और इस जीवन के बाद हम उसी असीम शक्ति में विलीन हो जाते हैं।अन्तत यही कह सकते है कि शक्ति ही सर्वस्व है। यही सम्पूर्ण सृष्टि का मूलाधार है।यह शक्ति आस्था का ही प्रतिरूप है।
— विभा कुमारी “नीरजा”

*विभा कुमारी 'नीरजा'

शिक्षा-हिन्दी में एम ए रुचि-पेन्टिग एवम् पाक-कला वतर्मान निवास-#४७६सेक्टर १५a नोएडा U.P