क्षणिका

संध्या बेला: एक सुरीला नग़मा

संध्या की बेला है, या है सुरीला नग़मा,
या कि लगा हुआ है सजीले रंगों का मजमा,
सुनहरी-रुपहली, लाल-पीले रंगों की नशीली रंगत ने,
बांध दिया है खूबसूरत-नशीला-अद्भुत समां.
दिन का अंत भी इतना खूबसूरत होता है, जाना न था,
चाहे जाना भी हो, माना न था,
शयन कक्ष की खिड़की से नमूदार
खूबसूरत नजारों ने खूबसूरत रंगोली दिखाई,
यह हकीकत थी, अफसाना न था.
-लीला तिवानी

*लीला तिवानी

लेखक/रचनाकार: लीला तिवानी। शिक्षा हिंदी में एम.ए., एम.एड.। कई वर्षों से हिंदी अध्यापन के पश्चात रिटायर्ड। दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत। हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। लीला तिवानी 57, बैंक अपार्टमेंट्स, प्लॉट नं. 22, सैक्टर- 4 द्वारका, नई दिल्ली पिन कोड- 110078 मोबाइल- +91 98681 25244