कविता

/ बेकार है सारी जिंदगी उसकी /

बेकार है सारी जिंदगी उसकी
अपने आपमें रहना,
अपने आपको समझना
सरल नहीं है, सबको
मनुष्य के उस दौड़- धूप में
कई बातें छिपी होती हैं
उलझनों में लपेटाकर
जीवन को दुरूह बनाती हैं
कभी वह अपने को
दूसरों की तुलना करके
आवर्धक लेंस में देखता है और
अहं की छाया में
आकाश की तरफ बढ़ता है तो
कभी हीनता की संकुचितता में
पाताल की ओर चला जाता है,
खतरा बनता है जीवन
ईर्ष्या, जलन, उन्माद विकार कई
अपने अंदर घुस जाना
वह मनुष्य होने की भावना से
बहुत दूर हट जाना
असमर्थ है वह जो
दमन, शोषण, हिंसा, अमानवीय
व्यवहारों के घेरे में
अपने आपको राजा महसूस करता है
जाति, धर्म, लिंग, प्रांत, भाषा को
अपना जायदाद मानता है
हिंस जंतु बनकर सिर फैलाता है
बेकार है सारी जिंदगी उसकी
जो सत्य नहीं जानता है
जीवन के यथार्थ में
सबको अपना समझता है और
सबमें रहने की शक्ति खो बैठता है।

पी. रवींद्रनाथ

ओहदा : पाठशाला सहायक (हिंदी), शैक्षिक योग्यताएँ : एम .ए .(हिंदी,अंग्रेजी)., एम.फिल (हिंदी), पी.एच.डी. शोधार्थी एस.वी.यूनिवर्सिटी तिरूपति। कार्यस्थान। : जिला परिषत् उन्नत पाठशाला, वेंकटराजु पल्ले, चिट्वेल मंडल कड़पा जिला ,आँ.प्र.516110 प्रकाशित कृतियाँ : वेदना के शूल कविता संग्रह। विभिन्न पत्रिकाओं में दस से अधिक आलेख । प्रवृत्ति : कविता ,कहानी लिखना, तेलुगु और हिंदी में । डॉ.सर्वेपल्लि राधाकृष्णन राष्ट्रीय उत्तम अध्यापक पुरस्कार प्राप्त एवं नेशनल एक्शलेन्सी अवार्ड। वेदना के शूल कविता संग्रह के लिए सूरजपाल साहित्य सम्मान।