कविता

पानी का बुलबुला

सागर की लहरों पे खेलना
आसमान से आगे है बढ़ना
गर पाना है नई कोई मुकाम
संघर्ष को करना है प्रणाम

दीन को हीन कभी ना समझना
बेबसी पर मजाक ना है करना
गुदड़ी में छिपा रहता है लाल
कॉटों में खिल जाता है गुलाब

मूरख से कभी तर्क ना करना
विद्वानों से दुश्मनी मँहगा पड़ना
सलाह अनपढ़ से ना है   लेना
जीवन भर पड़ता है तब रोना

कुर्तक की बहस व्यर्थ है करना
अनपढ़ के बीच ना है   बसना
सोंच इनका है संग संग चलना
पढ़े लिखे का सम्मान है लुटना

धन संपदा पर घमंड ना करना
जवानी का गुरूर ना   भरना
चन्द दिनों का है ये   मेहमान
लुट जाता है पल में सारा जहान

जाहिल के गाँव कभी ना  जाना
अपराधी से दोस्ती ना है करना
अपना भाव यहाँ है सबका खोना
ये किसी का कभी ना    होता

सोंच समझ कर फैसला है लेना
ज्लदीबाजी से है सदा बचना
धीरे धीरे मंजिल पथ पे बढ़ना
मंजिल निश्चित उसे है   मिलना

— उदय किशोर साह

उदय किशोर साह

पत्रकार, दैनिक भास्कर जयपुर बाँका मो० पो० जयपुर जिला बाँका बिहार मो.-9546115088