लघुकथा

और सन्नाटा छा गया

तड़के सुबह पांच बजे का समय। लोगों की आवाजाही शुरू ही हुआ था कि अचानक सड़क पर लोगो की भीड़ दिखाई दी।ऐसे समय पर एक सज्जन जो सभ्य जान पड़ते थे। “क्या हुआ?” कहते हुए आगे बढ़े।
तभी भीड़ से आवाज आती है- “एक्सीडेंट हुआ है!” “और एक लड़का घायल है!”
एक युवा दुर्घटना का शिकार हो गया था।लोग उसकी फोटो वीडियो बनाने में इतने मशगूल थे कि उसकी वेदना उसकी कराहना पर किसी का ध्यान नही जा रहा था।वो बारबार सहयोग की भीख मांग रहा था- मुझे बचाओ! पानी पिलाओ! कोई एम्बुलेंस बुलावा दो!!
तभी वह सज्जन उसके नजदीक पहुंच जाता है।उन्हें तुरन्त समंझ में आ जाता है।और बिना देरी किये एम्बुलेंस बुलवाता है।
कुछ ही पल में सायरन बजाता हुआ एम्बुलेंस पहुँच जाता है।
वह सज्जन उस घायल को उठाने के लिए उस भीड़ से गिड़गिड़ाता है।पर किसी ने सहयोग नही किया।बल्कि सभी धीरे-धीरे खिसकने लगे। ऐसे निर्मम और निर्दयी मानवीय भीड़ को देखकर वह सज्जन बहुत दुखी हुए। स्वयं जैसे-तैसे उठाया और अस्पताल रवाना कर दिया।
लेकिन उस सज्जन की अन्तरात्मा चिल्ला उठी- “यह कैसी मानवता है?”
एक मानव ही मानव का तमाशा देख रहा है।मानव की संवेदनाएँ मर चुकी है।वह लड़का जो दुर्घटना का शिकार है वह घायल नही है।लोगों की मानवीय भावनाएँ घायल हो गई है।”
लोगों की भीड़ बेपरवाह बेजान मुर्दों की भांति खिसकने लगी।सड़क में फैला लालिमा चीखते-चीखते शांत हो गया।और कुछ ही पल में उस जगह सन्नाटा छा गया।

— अशोक पटेल “आशु”

*अशोक पटेल 'आशु'

व्याख्याता-हिंदी मेघा धमतरी (छ ग) M-9827874578