कविता

वक्त: दो पहलू

वक्त बहुत बुरी बला है
वक्त ऐसे उड़ जाता है
जैसे जमीं पर खड़े होकर
वायुयान को उड़ते देखो
तो वायुयान पल भर में
आंखों से ओझल हो जाता है
वक्त को नीचे से देखो
तो वक्त फुर्र से उड़ जाता है
हाथ नहीं आता है.

वक्त बहुत अच्छी नेमत है
वक्त पर सवार हो जाओ
तो वक्त अपना हो जाता है
ठीक उसी तरह जैसे
आप वायुयान में यात्रा करते समय
खिड़की से झांक रहे हों
तो वायुयान बहुत धीरे-धीरे
घिसटकर चलता लगता है
जब कि वह आठ-नौ सौ
किलोमीटर प्रति घंटा गतिमान होता है.

*लीला तिवानी

लेखक/रचनाकार: लीला तिवानी। शिक्षा हिंदी में एम.ए., एम.एड.। कई वर्षों से हिंदी अध्यापन के पश्चात रिटायर्ड। दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत। हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। लीला तिवानी 57, बैंक अपार्टमेंट्स, प्लॉट नं. 22, सैक्टर- 4 द्वारका, नई दिल्ली पिन कोड- 110078 मोबाइल- +91 98681 25244